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पुद्गल-कोश
गुणों का अवस्थान रहता है । अर्थात् द्रव्य में गुणों का वाहुल्य होने से सब गुणों का नाश नहीं होता तथा द्रव्य का अन्यत्व होने से भी बहुत से गुणों की स्थिति रहती है, अतः द्रव्यस्थानायु की अपेक्षा भावस्थानायु असंख्यगुण है ।
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पुद्गल द्रव्य का परमाणु, द्विप्रदेशी स्कंध आदि रूप से रहना द्रव्यस्थानायु है । एक प्रदेशादि क्षेत्र में पुद्गलों के अवस्थान को क्षेत्रस्थानायु कहते हैं ।
- ५५ सकंप - निष्कंप स्कंधों का अल्पबहुत्व
एएसि णं भंते ! कयरेहितो अप्पा बा ?
अनंतपए सियाणं खंधाणं सेयाणं निरेयाण य कयरे बहुया ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया था ।
गोयमा ! सव्वत्थोवा अणतपएसिया खंधा निरेया, सेया अनंतगुणा । -भग० श २५ । उ ४ । सू २१० । पृ० ९२८
सबसे कम अनंतप्रदेशी स्कंध निष्कंप है, उससे सकंप अनंतगुणे हैं ।
एएसि णं भंते ! अणंतपदेसिया बंधाणं देसयाणं, सव्वेयाणं, निरेयाण य करे करेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया
वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा अणतपदेसिया खंधा सव्वेया, निरेया अनंतगुणा,
देसया अनंतगुणा ।
-भग० श २५ । उ ४ । सू २३८ । पृ० ९३०-३१
सबसे कम अनन्तप्रदेशी स्कंध सकंप है, उससे निष्कंप अनन्तगुणे हैं, उससे देश से सकंप अनन्तगुणे हैं ।
एएसि णं भंते ! दुपदेसियाणं खंधाणं देतेयाणं सव्वेयाण निरेयाण य कयरे कयरेहितो अप्पा वा ? बहुया वा ? तुल्ला वा ? विसेसाहिया वा ?
गोयमा ! सव्वत्थोवा दुपदेसिया खंधा सव्वेया, देसेया असंखेज्जगुणा, निरेया असंखेज्जगुणा । एवं जाव असंखेज्जपएसियाणं खंधाणं ।
- भग० श २५ । उ ४ । सू २३७ । पृ० १३०
द्विप्रदेशी स्कंध यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कंध में सकंप सबसे कम है, उससे देशतः सकंप असंख्यातगुणे हैं, उससे निष्कंप असंख्यातगुणे हैं ।
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