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पुद्गल-कोश
इनसे अलोकाकाश अनंतगुणे अधिक है । यद्यपि आकाश द्रव्य एक है परन्तु उसके प्रदेश अनंत हैं ।
• ५९ व्यावहारिक परमाणु ( स्कंध पुद्गल ) और उत्सेधांगुल सत्येण सुतिक्खेण वि छेत्तु ं भेतु ं च णं किरन सक्को ।
तं परमाणु सिद्धा वयंति आई पमाणाणं ॥१३९० ॥
जो सुतीक्ष्ण शस्त्र से नहीं छेदा-भेदा जा सकता । उसे सिद्ध केवल ज्ञानी ने परमाणु कहा है । वह प्रभाण का आदि कारण है ।
नोट - वह व्यावहारिक परमाणु अनंश परमाणुओं के समुदाय से बना है ।
परमाणू तसरेणु रहरेणू अग्गयं च बालस्स । लिक्खा, जूया य जवो अट्ठगुणविसडिढया ॥१३९१ ॥
परमाणु, त्रसरेणु, रथरेणु, वालाग्र, लिक्ख, जूं यव- ये क्रमश: एकदूसरे से आठ गुणे मोटे हैं ।
नोट -८ व्यावहारिक परमाणु = १ त्रसतेणु
= १ रथरेणु
८त्रसरेणु
रथरेणु
८ वालाग्र
लिक्ख
= १ वालाग्र
= १ लिक्ख
= १ जूं
= १ यव
८ जू
वीसं परमाणू लक्खा सत्तानउइ भवे सहस्साइं ।
सययेगं वावन्नं एगंमि उ अंगुले हुंति ॥१३९२ ॥
२०९७१५२ व्यावहारिक परमाणु = १ उत्सेधांगुल
अर्थात् क्रमशः ८ ८ = ६४६= ५१२ × ८ = ४०९६ × ८ = ३२७६८ × ८=२६२१४४× ८ = २०९७१५२ व्यावहारिक परमाणु का एक उत्सेधांगुल होता है ।
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परमाणु इच्चाइक्कमेणं उस्सेहअंगुल भणिया ।
- प्रवसा० गा १३९०, १३९१, १३९२, १३९३ पूर्वार्ध
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