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पुद्गल-कोश वि। एवं सेसावि वण्णा गंधा रसा फासा भाणियवा। फासाणं कक्खडमउयगुरुयलहुयाणं जहा एगपएसोगाढाणं भणियं तहा भणियव्वं । अवसेसा फासा जहा वन्ना भणिता तहा भाणियव्वा ॥ २६ दारं ॥
-पण्ण० प ३ । सू १८२ हे भगवन् ! एकगुण काला, संख्यातगुण काला, असंख्यातगुण काला, अने अनन्तगुण काला पुद्गलोमां द्रव्यार्थपणे, प्रदेशार्थपणे अने द्रव्यार्थ-प्रदेशार्थपणे कोण कोनाथी अल्प, बहु, तुल्य के विशेषाधिक छे ? हे गौतम ! जेम सामान्य पुद्गलों संबंधे कह्य तेम अहीं कहेवु, एम संख्यातगुण काला संबंधे पण कहेवु, ए रीते बाकीना वर्ण, गंध अने रस संबंधे कहे। स्पर्शमां कर्कश, मृदु. गुरु अने लघु स्पर्श संबंधे जेम एक प्रदेशावगाढने कह्य छ तेम कहे। बाकीना स्पर्शों जेम वर्गों कह्या छे तेम कहेवा ।
अर्थात् एक गुण काला, संख्यातगुण काला, असंख्यातगुण काला तथा अनंतगुण काले पुद्गलों में द्रव्य रूप से, प्रदेश रूप से तथा द्रव्य तथा प्रदेश रूप से कौन किनसे अल्प, बहु, तुल्य अथवा विशेषाधिक है।
जैसा सामान्य पुद्गलों के संबंध में कहा- वैसा ही यहाँ कहना चाहिए ।
इसी प्रकार संख्यातगुण काले वर्ण के संबंध में कहना। इसी प्रकार शेष वर्ण(नील-रक्त-पीत-शुक्ल) गंध, रस के विषय में कहना चाहिए।
स्पर्श में कर्कश, मृदु, गुरु और लघु स्पर्श के विषय में जैसा एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल के विषय में कहा वैसा ही कहना चाहिए ।
अवशेष के स्पर्शों के विषय में जैसा वर्ण के विषय में कहा-वैसा कहना चाहिए। '३३ तेइस वर्गणा का समवाय से विवेचन-अल्पबहुत्व
अणु संखा संखगुणा परित्तवग्गणमसंखलोगगुणं । गुणगारो पंचणं अग्गहणाणं अभवणंतगुणो ॥९॥ आहरतेजभासा मणेण कम्मेण वग्गणाण भवे । उक्कस्सस्स विसेसो अभव्वजोवेहि अधियो दु॥१०॥ धुवखंधसांतराणं धुवसुण्णस्स य हवेज्ज गुणगारो। जीवेहि अणंतगुणो जहणियादो दु उक्कस्से ॥११॥
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