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पुद्गल-कोश परस्पर में यदि रूक्ष स्पर्श गुणों में दो गुण का अन्तर हो तो बंधन होता है-अर्थात् एक पुद्गल का स्पर्श गुण दूसरे पुद्गल के स्पर्श गुण से दो गुण अधिक हो तभी बंधन होता है।
स्निग्ध स्पर्श वाले पुदगल का रूक्ष स्पर्श वाले पुदगल के साथ-स्पर्श गुण सम हो या विषम हो दोनों का परस्पर बंधन होता है, लेकिन दोनों में से कोई जघन्य (एक) गुण वाला हो तो बंधन नहीं होता है।
टीकार्थ-परस्पर समान गुण स्निग्धता में बंधन नहीं होता है तथा परस्पर समान गुण रूक्षता में भी बंधन नहीं होता है परन्तु यदि स्निग्धता अथवा रूक्षता में गुणों की विषमता हो तो बंधन होता है।
स्निग्ध परमाणु आदि का विषम गुण स्निग्ध परमाणु आदि के साथ बंध होता है, उसी प्रकार रूक्ष परमाणु आदि का विषम गुण रूक्ष परमाणु आदि के साथ बंध होता है। यह बंध विषम मात्रा ( गुणत्व) से होता है। यह विषम मात्रा कैसी होनी चाहिए-इस प्रश्न के उत्तर में कहा जाता हैं।
"णिद्धस्स णिद्ध णदुयाहिएण'-इत्यादि का भाव है कि यदि स्निग्ध परमाणु आदि का स्निग्ध परमाणु आदि के साथ बंध होता है तो नियम से बंध होने वाले दोनों पक्षों में से कोई एक पक्ष दो गुण या दो से अधिक गुण अधिकता वाला होता है। उसी प्रकार रूक्ष परमाणु आदि का रूक्ष परमाणु आदि से बंधन होता है तो एक तरफ दो गुण या द्वयाधिक गुण की अधिकता होगी।
स्निग्ध पुद्गल का रूक्ष पुद्गल से बंधन सम गुण या विषम गुण दोनों अवस्था में होता है लेकिन जघन्य गुण में बंधन नहीं होता है। एक गुण स्निग्ध, एक गुण रूक्ष को बाद देकर शेष दो गुण स्निग्धादि दो गुण रूक्षादि सर्व का बंध होता है।
श्वेताम्बर मान्यताः दिगम्बर मान्यता
पण्ण टीका तत्व० भा० षट्० तत्त्व० वि०
सदृश विसदश जघन्य+अघन्य नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं जघन्य+एकाधिक नहीं नहीं नहीं है नहीं नहीं नहीं नहीं जघन्य+ द्वय अधिक नहीं नहीं है है नहीं नहीं नहीं नहीं जघन्य + वयादि अधिक नहीं नहीं है है नहीं नहीं नहीं नहीं
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