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पुद्गल - कोश
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परस्थान की अपेक्षा एक गुणांश स्निग्ध का भी एक गुणांश रूक्ष के साथ बंध नहीं होता है इन सबका - - स्निग्ध गुणांश और रूक्ष गुणांशों का संयोग होने पर भी परस्पर एकत्व परिणति रूप बंध नहीं होता है | क्या कारण में कि इन जघन्य गुणांश स्निग्धों का तथा जघन्य गुणांश रूक्षों का बंध नहीं होता है । वैसी परिणमन रूप शक्ति का अभाव होने कारण बंध नहीं होता है । ऐसा बंधन अर्थात् जघन्य गुणांश पुद्गलों का बंधन के अभाव में नहीं होता है । संयोग होने पर भी वैसी परिणमन करने की शक्ति अभाव होने के कारण बंधन नहीं होता है ।
द्रव्यों की परिणमन शक्ति विचित्र होती है ; वह परिणमन शक्ति क्षेत्र, काल आदि के अनुसार होती है तथा प्रयोग और विस्रसा की अपेक्षा प्रभावित होती रहती है । प्रयोग के वश प्रयोग करने वाले की कहीं भी प्रयोगवश जो परिणमन होता है उसमें प्रयोग करने वाले की इच्छा का अनुरोध न करें ।
जघन्य स्निग्ध गुण स्तोक होने के कारण ही जघन्य गुण रूक्ष पुद्गल का परिणमन करने में समर्थ नहीं है । उसी प्रकार जघन्य रूक्ष गुण भी अल्प होने के कारण जघन्य गुण स्निग्ध को आत्मसात करने में समर्थ तहीं है ।
यहाँ पर गुण शब्द संख्यावाची है, यथा- इस पुरुष का एक ही गुण है और आधिक्य अर्थ में द्विगुण, त्रिगुण का व्यवहार होता है । स्नेहादि गुणांशों के प्रकर्षअपकर्ष - न्यूनाधिक भेद होते हैं यथा - जल से बकरी का दूध, बकरी के दूध से गाय का दूध, गाय के दूध से भैंस का दूध तथा उससे हाथी का दूध स्निग्ध होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर स्निग्ध गुण की अधिकता रहती है ।
इन्हीं का यदि पूर्व - पूर्व की अपेक्षा विचार किया जाय तो पूर्व-पूर्वं दूध रूक्ष होगा ।
एक गुण स्निग्ध का एक गुण स्निग्ध के साथ बंध नहीं होता है । इसी प्रकार दो आदि सभी सदृश बोधक - संख्यात, असंख्यात, अनंत, अनंतानंत गुण स्निग्ध के साथ बंध नहीं होता है ।
उसी प्रकार एक गुण रूक्ष का एक गुण रूक्ष के साथ बंधन नहीं होता है यावत् ( दो आदि सभी सदृश बोधक - संख्यात, असंख्यात ) अनंत गुण रूक्षों का सदृशों के साथ बंध नहीं होता है ।
सूत्रार्थं का जहाँ तक संबंध हैं- जघन्य गुण स्निन्धों का तथा जघन्य गुण रूक्षों का परस्पर बंध नहीं होता है ।
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