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पुद्गल-कोश •५ पुद्गल का ज्ञान अवधि ज्ञानो-सर्व पुद्गलों को जान सकता है
दव्वओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अणंताई रूविदम्बाईजाणइ पासइ, उक्कोसेणं सव्वरूविदव्याईजाणइ पासइ ।
-क्रर्मग्र० भा २ । गा८ । टीका । पृ० २१
अवधिज्ञानी द्रव्य की अपेक्षा जघन्य से अनंत रूपी द्रव्यों को जानता है-देखता है तथा उत्कृष्ट से सर्व रूपी द्रव्यों को जानता है, देखता है ।
.६ मनपर्यव ज्ञानी को पुदगलों का ज्ञान
दव्वओ उजुमई अणते अणंतपएसिए खंधे जाणइ पासइ। ते चेव विउलमई अब्भहियतराए विमलतराए जाणइ पासइ ।
- कर्मग्र० भा १ । गा ८ । टीका । पृ० २२
ऋजुमति मनःपर्यवज्ञान द्रव्य की अपेक्षा अनंत प्रदेशी स्कंध को जानता है, देखता है ; विपुलमति आभ्यंतर रूप से-विमलतररूप से जानता है, देखता है।
मनःपर्यवज्ञानी-मनोवर्गणा के पुद्गलों को जानता है
___x x x। मनपर्यवज्ञानी मनोद्रव्याणि सूक्ष्माण्यपि पश्यति, चिन्तनीयं तु घटादि स्थूलमपि न पश्यति x x x।
--विशेभा० गा ६७५ । टीका । पृ० २९२ ___ मनःपर्यवज्ञानी-मनोद्रव्यों को-सूक्ष्म होने से भी प्रत्यक्ष देखता है परन्तु चिन्तनीय घटादिवस्तु स्थूल होने पर भी नहीं देखता है । स्कध पुद्गल का ज्ञान मनःपयवज्ञान अनंत-अनंतप्रदेशी स्कंध को जानता है
xxx तत्थ दवओ णं उजुमती अणते अणंतपएसिए. खंधे जाणइ पासइxxx।
-नंदी० सू ३८
ऋजमति मनःपर्यवज्ञान द्रव्य से अनंत प्रदेशी अनंत स्कन्धों को जानता है।
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