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पुद्गल-कोश
इरियावहक मक्खंधा कक्खडादिगुणण अवोहामउअफासगुणेण सहिया चेव बंधभागच्छति त्ति इरियावहकम्मं मउअंति भण्णदे ।
ईर्यापथ कर्म स्कंध कर्कश आदि गुणों से रहित हैं व मृदु स्पर्श गुण से युक्त होकर ही बध को प्राप्त होते हैं अतः ईर्यापथ कर्म को 'मृदु' कहा है ।
च.
पोग्गलपदेसु चिरकालावद्वाणणिबंधणणिद्धगुणपडिवक्खगुणंण पडिग्ग हियत्तादो ल्हुक्खं । जइ एव तो इरियावहकम्मम्मि ण वखंधो, ल्हुक्खेगगुणाणं परोप्परबंधाभावादी ? ण, तत्थ दुरहियाणं बंधुवलंभादो । सद्दणिद्दसो किफलो ? इरियावहकम्मस्स कम्मक्खधा सुअंधा सच्छाया त्ति जाणावणफलो इरियावहकम्मवखंधा पंचवण्णाण होंति, हंसधवला चेव होंति त्ति जाणावण सुक्किलणिसो कदो। एत्थतण चैव सद्दो सव्वत्थ जोजेयव्व पडिवक्खणिराकरणटुं । इरियावहकम्मवखंधा रसेन सक्करादो अहियमहुरत्तजुत्ता ति जाणावणट्ठ मंदणिद्देसो कदो । कुदो एवमुवलब्भदे ? संदशब्दस्य मन्द्रशब्दपरिणामत्वेनोपलं भात् । बंधमागयपरमाणू विदियसमए चेव णिस्सेसं णिज्जरं तित्ति महव्वयं ।
- षट्० खण्ड ५, ४, २४ । पु १३
ईर्यापथ कर्म स्कंध रूक्ष है क्योंकि पुद्गल प्रदेशों में चिरकाल तक अवस्थान का कारण स्निग्ध गुण का प्रतिपक्षभूत गुण उसमें स्वीकार किया गया है । रूक्ष गुण वालों का द्वयधिक गुणवालों का बंध पाया जाता है ।
ईर्यापथ कर्म के कर्मस्कंध अच्छी गंध वाले और अच्छी कांति वाले होते हैं । ईर्यापथ कर्म स्कंध पाँच वर्ण वाले नहीं होते, किन्तु हंस के समान धवल वर्णं वाले ही होते हैं ।
पथ कर्म स्कंध रस की अपेक्षा सक्कर से भी अधिक माधुर्य युक्त होते हैं ।
बंधन को प्राप्त हुए परमाणु दूसरे समय में ही सामस्त्य भाव से निर्जरा को प्राप्त होते हैं । इसलिए ईर्यापथ कर्म स्कंध महान् व्ययवाले कहे गये हैं ।
-२ पुद्गलविपाकी कर्म- प्रकृत्तियाँ
देहादी फारसं ता थिरसुहपत्तेयदुगं
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णिमिणतावजुगलं च । पोग्गल विवाई |
पण्णासा अगुरुतियं
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- कम्मगो० गा ४७
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