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पुद्गल-कोश नारकी और आहार के पुद्गल
जाई वण्णओ कालवण्णाई आहारेति ताई कि एगगुणकालाई आहारति जाव दसगुणकालाई आहारेंति, संखेज्जगुणकालाई', असंखेज्जगुणकालाइ, अणतगुणकालाई आहारेति ? गोयमा! एकगुणकालाइ पि आहारेंति जाव अणंतगुणकालाइ पि आहारेति । एवं जाव सुक्किलाई।
-पण्ण० पद २८ । सू १७९८
नारकी एक गुण काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् अनंतगुणकाले पुद्गलों का भी आहार करते हैं। इसी प्रकार (नील वर्ण से लेकर ) यावत शुक्लवर्ण के विषय में पूर्वोक्त प्रश्न और समाधान जानना चाहिए। नारकी और आहार के पुद्गल एवं गंधतोवि रसतोवि।
-- पण्ण० पद २८ । सू १७९९
इसी प्रकार गन्ध और रस की अपेक्षा से भी पूर्ववत् आलापक कहना चाहिए।
जाइभावओ फासमंताताई णो एगफासाई आहारति, णो दुफासाई आहारेंति, णो तिफासाइं आहारेंति, चउफासाई आहारति जाव अट्ठफासाई पि आहारेति, विहाणमग्गणं पडुच्च कक्खडाई पि आहारेति जाव लुक्खाइपि।
-पण्ण० पद २८ । सू १८००
वे न तो एक स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, न दो और तीन स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, अपितु चतुःस्पर्शी यावत् अष्टस्पर्शी पुद्गलों का आहार करते हैं। विधान की अपेक्षा से वे कर्कश यावत् रूक्ष स्पर्श पुदगलो का आहार करते हैं।
जाइ फासओ कक्खडाई आहारेति ताई कि एगगुणकक्खडाई आहारेंति जाव अणंतगुणकक्खडाइ पि आहारेति ।
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