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पुद्गल-कोश
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द्रव्य की अपेक्षा-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय व आकाशस्तिकाय के द्रव्यतीनों समान होते हुए सबसे न्यून है। उससे जीव द्रव्य अनंतगुणे हैं, उससे पुद्गल द्रव्य अनंतगुणे हैं तथा उससे काल के द्रव्य अनंतगुणे हैं।
'३ पुद्गल और आकाश
वव्वाई संखेत्ताओऽणंतगुणा पज्जवा सदवाओ। नियमाहाराहीणो तेसि वुड्डी स हाणी य॥
-विशेभा० गा ७३६
इह स्वरूपेण तावत् समस्तपुद्गलास्तिकायलक्षणानि द्रव्याण्याधारभूतात् स्वक्षेत्रात् 'अनंतगुणानि' वर्तन्त इति लिङ्गव्यत्ययेनाऽनापि योज्यते, एककाकाशप्रदेशेऽनन्तस्य परमाणु-द्वयणुकादि द्रव्यस्यावगाहात् ।
पयंवाः पर्यायाः पुनः स्वाश्रयभूताद् द्रव्यादनन्तगुणाः, एकैकस्य परमाण्वादेरनन्तपर्यायत्वादिति xxx द्रव्यस्य निजकाधारः क्षेत्रम, पर्यायाणा तु निजकाधारो द्रव्याणि, तदधीना च तेषां द्रव्यपर्यायाणां सामान्येन वृद्धिः हानिश्च भवति ।
स्वरूप की अपेक्षा-समस्त पुद्गलास्तिकाय रूप द्रव्य स्वआधारभूत क्षेत्र से अनंतगुणे हैं क्योंकि एक-एक आकाश प्रदेश में अनंत परमाणु, द्विप्रदेशी स्कंधादि द्रव्य अवगाहित होकर रहते हैं तथा पर्याय स्वाश्रयभूतद्रव्य से अनंतगुणी है क्योंकि एकएक परमाणु आदि द्रव्य अनंत पर्याय वाले होते हैं। इस प्रकार द्रव्य का स्वआधार क्षेत्र हैं और पर्याय का स्वआधार द्रव्य है अतः द्रव्य-पर्यायों की वृद्धि-हानि सामान्यतः उसके अधीन होती है।
•४ पुद्गल अनंत है
जीवादु पुग्गलादो, णंतगुणा चावी संपदा समया। लोयायासे संति य, परमट्ठो सो हवे कालो।
-नियम• अधि २ । गा ३२
जीवों से पुद्गल अनंतगुणे हैं, पुद्गल से अणंतगुणे काल के समय हैं ।
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