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पुद्गल-कोश
५४७ पांच शरीरों से लेकर स्पर्शनाम तक ५० ( औदारिक आदि पाँच शरीर, औदारिक शरीर बंधन आदि पाँच बंधन, औदारिक शरीर संघात आदि पाँच संघात, समचतुरस्र संस्थानादि छःसंस्थान, औदारिक आंगोपांग--4क्रिय आंगोपांग-आहारक आंगोपांग, वज्रऋषभ नाराच आदि छः संहनन, कृष्णादि पाँच वर्ण, सुरभि आदि दो गंध, तिक्तादि पांच रस, कर्कश आदि आठ स्पर्श- इस प्रकार नाम कर्म की ५० प्रकृति ) निर्माण आताप, उद्योत-उपघात स्थिर, शुभ, प्रत्येक, अस्थिर, अशुभ साधारण, अगुरुलघु, परघात आदि नामकर्म को ६२ प्रकृतियाँ पुद्गलविपाकी हैं । अर्थात् इनके उदय का फल पुद्गल में ही होता है ।
पुद्गलविपाको प्रकृत्तियाँ शरीर के पुद्गल देहस्स य गोकम्म देहुदयजदेहखंदााणि ।
-कम्मगो• गा ८० उत्तरार्ध
शरीर नाम कर्म का नोकर्म द्रव्य शरीर नाम कर्म के उदय से उत्पन्न हुए अपने शरीर के स्कंध रूप पुद्गल जानने चाहिए।
ओरालियवेगुब्धिय आहारयतेजकम्मणोकम्म। ताणुदयजचउदेहा कम्मे विस्संचयंणियमा ।
- कम्मगो• गा ८१ औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस शरीर नाम कर्म का नोकर्म द्रव्य अपने अपने उदय से प्राप्त हुई शरीर वर्गणा है। क्योंकि उन वर्गणाओं से ही शरीर बनता है। और कार्मण शरीर का नो कर्म द्रव्य विस्रसोपचयरूप (स्वभाव से कर्म रूप होने योग्य कार्मण वर्गणा ) परमाणू हैं । पुद्गलविपाको प्रकृतियां
बंधणपहुदिसमण्णियसेसाणं देहमेव गोकम्मं । णवरि विसेसं जाणे सगखेत्तं आणुपुवीणं ॥
-कम्मगो• गा ८२ शरीर बंधन नाम कम से लेकर जितनी पुद्गल विपाकी प्रकृतियां नो कर्म शरीर ही है।
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