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पुद्गल-कोश
५३१ वैमानिक देव जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं उनमें से (१) कई वैमानिक देव ( आहार्यमाण पुद्गलों को ) जानते हैं, देखते हैं और आहार करते हैं। और (२) कोई न तो जानते हैं, न देखते हैं, किन्तु आहार करते हैं।
इसका कारण यह है कि वैमानिक देव दो प्रकार के कहे गये हैं-यथा-मायी मिथ्यादृष्टि उपपन्नक और अमायी सम्यगदृष्टि उपपन्नक ।
इस प्रकार जैसे ( सू ९८८ में उक्त ) प्रथम इन्द्रिय उद्देशक में कहा है, वैसे ही यहाँ सब यावत्-इस कारण से हे गौतम । ऐसा कहा गया है-यहाँ तक कहना चाहिए।
विवेचन-चौवीस दंडकवर्ती जीवों द्वारा आहारमाण पुद्गलों को जानने-देखने पर यहाँ पर विचार किया है। वहाँ एक तालिका दी जा रही है, जिससे आसान से जाना जासके । देखो-पुद्गल कोश खंड २ '६९ स्कंध पुद्गल और संख्या .१ द्रव्य को अपेक्षा स्कंध पुद्गलों की संख्या
( पाठ के लिए देखो क्रमांक १५ )
द्विप्रदेशी स्कंध अनंत है यावत् दस प्रदेशी स्कंध अनंत है यावत् संख्यात प्रदेशी स्कंध अनंत है यावत् असंख्यात प्रदेशी स्कंध अनंत है यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध अनंत है । अतः स्कंध पुद्गल संख्या की अपेक्षा अनंत है। स्कंध पुद्गल की संख्या
परमाणपोग्गला णं भंते ! कि संखेज्जा? असंखेज्जा? अणंता ? गोयमा ! नो संखेज्जा, नो असंखेज्जा, अणंता। एव जाव अणंतपदेसिया खंधा।
-भग. श २५ । उ ४ । सू १४७ द्विप्रदेशी स्कंध अनंत है, संख्यात और असंख्यात नहीं है। तीन प्रदेशी स्कंध से अनत प्रदेशी स्कंध तक अनंत है, संख्यात और असख्यात नहीं है। •२ क्षत्रवगाहित स्कंध पुद्गल की संख्या
( पाठ के लिए देखो क्रमांक १५)
आकाश के एक प्रदेश को अवगाहित करने वाले स्कंध पुद्गल अनंत है। इसी प्रकार आकाश के दो प्रदेश अवगाहित करने वाले स्कंध पुद्गल अनंत है यावत्
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