________________
पुद्गल-कोश
५३९ जैसा अंशतः तथा सर्वांश रूप से सकंप तथा निष्कंप द्विप्रदेशी स्कंध के अंतर काल के विषय में कहा है वैसा ही अशतः तथा सर्वांश रूप से सकंप तथा निष्कंप तीन प्रदेशी यावत् अनत प्रदेशी स्कंध के अंतर काल के विषय में समझना चाहिए।
दुपए सियाणं भंते ! खंधाण देसेयाण केवइयं कालं अंतर होइ ? नत्थि अंतरं। [सू २३३ ]
सम्वेयाणं केवइयं कालं अंतरं होइ ? नत्थि अंतरं। [ सू २३४ ]
निरेयाणं केवइयं कालं अंतरं होइ ? नस्थि अतरं । एवं जाव अणंतपएसियाणं [ सू २३५ ]
भग० श २५ । उ ४ अंशत: सकंप द्विप्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) का अंतर काल नहीं होता है ।
सर्वांश रूप से सकंप द्विप्रदेशी स्कंघ ( बहुवचन ) का अंतर काल नहीं होता है।
निष्कंप द्विप्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) का अंतर काल नहीं होता है।
इसी प्रकार तीन प्रदेशी यावत् अनंत प्रदेशी ( बहुवचन ) स्कंध के विषय में जानना चाहिए। ( देखो क्रमांक २२ । ) .७१ स्कंध पुद्गल और तेजोलेश्या ( शीत तेजोलेश्या उष्ण-तेजोलेश्या )
तए णं अहं गोयमा ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अणुकंपणट्टयाए वेसियायणस्स बालतवस्सिस्स उसिण तेयपडिसाहरणट्ठयाए एत्थणं अंतरा अहं सोयलियं तेयलेस्सं णिसिरामि, जाए सा मयं सोयलियाए तेयलेस्साए वेसीयायणस्स बालतवस्सिस्स उसिणा तेयलेस्सा पडिहया।
-भग. श१५। सू ६५
हे गौतम ! मैंने ( भगवान महावीर ) मंखलिपुत्र गोशालक के ऊपर अनुकम्पा करके वैश्यायन बालतपस्वी की तेजोलेश्या ( उष्ण तेजोलेश्या ) का प्रतिसहरण करने के लिए, शीतलतेजोलेश्या बाहर निकाली। मेरी उस शीतल तेजोलेश्याय वैश्यायन बालतपस्वी की उष्णतेजोलेष्या का प्रतिघात हुआ।
तए णं से वेसियायणे बालतवस्सी ममं सोयलियाए तेयलेस्साए साओसोणं तेयलेस्सं पीडहयं जाणित्ता गोसालस्स मखलिपुत्तस्स सरीरगस्स किधि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org