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पुद्गल-कोश
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मंखलिपुत्र गोशालक ने भगवान महावीर का वध करने के लिए अपने शरीर में से जो तेजोलेश्या निकाली थी, वह निम्नलिखित सोलह देशों का घात करने में, वध करने में, उच्छेदन करने में और भस्म करने में समर्थ थी । यथा - १ – अग, २ - वंश, ३ - क्रौत्स, - मगध, ४ - मलय, ५ – मालव, ६ अच्छा, ७- वत्स ८९ - पाट, १० - लाढ, ११ - वज्रा, १२ - मोली, १३ – काशी, १४ – कौशल, १५ - अबाध और १६ – सभुतर ।
-२ अत्थि णं भंते ! अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति ? उज्जोवेंति ? तवेंति ? पभासंति ? हंता अस्थि ।
कयरे णं भंते! ते अच्चित्ता वि पोग्गला ओभासंति ? उज्जोर्वेति ? तवेंति ? पभासंति ?
कालोदाई ! कुद्धस्स अणगारस्स- -तय-लेस्सा- निसट्टा समाणा दूरं गता दूर निपतति, देसं गतासं निपतति, जहि-जहिं च णं सा निपततितहि तहि च णं ते अचित्ता वि पोग्गला ओभासंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासंति । एतेणं कालोदाई ! ते अचित्ता वि पोग्गला ओभसंति, उज्जोवेंति, तवेंति, पभासंति ।
- भग० श ७ | उ १० । सू २२९ । २३०
नोट- वह निकेवल पोद्गलिक शक्ति है । इसका प्रमाण भी श्रमण कालोदायी और भगवान् महावीर के प्रश्नोत्तर में मिलता है । श्रमण कालादायी ने भगवान् महावीर से पूछा - हे भगवान! जैसे सचित्त अग्निकाय प्रकाश करती है वैसे अचित्त अग्निकायके पुद्गल प्रकाश करते हैं ? उद्योत करते हैं, तपते हैं, प्रभास करते हैं ।
भगवान् महावीर ने कहा -- हां कालोदायिन् ! अचित्त पुद्गल भी प्रकाश, उद्योत करते हैं । अहो भगवान् ! कौन से अचित्त पुद्गल प्रकाश करते हैं यावत् तपते हैं । अहो कालोदायिन् । क्रुद्ध अनंगार से तेजो लेश्या निकलकर दूर गई हुई दूर गिरती है, पास गई हुई पास गिरती है । यह तेजोलेश्या जहां गिरती है । वहाँ वे उसके अचित्त पुद्गल प्रकाश करते हैं, उद्योत करते हैं, तपते हैं और प्रभास करते हैं ।
नोट - तेजोलेश्या के पुद्गल अष्टस्पर्शी बादर स्कंध है । तेजोलेश्या के दो भेद है- उष्णतेजो लेश्या व शीततेजो लेश्या । भगवान् महावीर शीतलतेजोलेश्या के द्वारा उष्णते जो लेश्या को शान्त किया । फलस्वरूप गोशालक बच गया ।
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