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पुद्गल-कोश नोट-प्रज्ञापना के टोकाकार ने कहा है केवलमेत्तं वैक्रियशरीरान्तर्गता इति न गर्भाधान हेतवः।
-प्रज्ञा० पद ३४ । सू ३२३-टीका
अर्थात् देव के उस शुक्र से अप्सरा में गर्भाधान नहीं होता, क्योंकि देवों के वैक्रिय शरीर होता है।
स्पर्शादि से परिचारणा करने वाले देवों के भी शुक्र-विसर्जन होता है। वृत्तिकार ने इस विषय में स्पष्टीकरण किया है कि देव-देवी का कायिक सपकं न होने पर भी दिव्य प्रभाव के कारण देवी में शुक्र-सक्रमण होता है और उसका परिणमन भी उन देवियों के रूप लावण्य में वृद्धि करने में होता है।' ६ पुद्गलों का ज्ञान आहार के पुद्गलों का ज्ञान
णेरइया णं भंते ! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हति कि जाणंति पासंति आहारति ? उयाहु ण जाणंति ण पासंति आहारति ?
गोयमा ! ण जाणंति ण पासंति, आहारेति । एवं जाव तेइ दिया।
-पण्ण० प ३४ । सू २०४०-४१
नैरयिक जिन पुद्गलों को आहार के रूप में ग्रहण करते हैं वे उन पुद्गलों को न तो जानते हैं और न देखते हैं किन्तु उनका आहार करते हैं ।
इसी प्रकार ( असुर कुमार से लेकर यावत् ) त्रीन्द्रिय तक कहना चाहिए।
चरिदियाणं पुच्छा। गोयमा ! अत्थेगइया ण जाणंति पासंति आहारति, अत्थेगइया ण जाणंति ण पासंति आहारति ।
-पण्ण० सू ३४ । पृ० २०४२ कई चतुरिन्द्रिय आहार्यमाण पुद्गलों को नहीं जानते हैं, किन्तु देखते हैं व आहार करते हैं और कई चतुरिन्द्रिय न तो जानते हैं, न देखते हैं किन्तु आहार करते हैं ।
१-शुक्रपुद्गल-संक्रमो दिब्यप्रभावादवसेयं ।-प्रज्ञा० सू ३२६-टीका
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