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पुद्गल-कोश नोट--द्विप्रदेशी स्कंध यावत अनंत प्रदेशी स्कंध कुछ देशतः सकंप रहते हैं, कुछ सर्वांश रूप से सकंप रहते हैं। तथा कुछ निष्कंप रहते हैं। अतः ऐसा कहा जाता है कि द्विप्रदेशादि स्कंध यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध पुद्गल (बहुवचन ) सदा काल देशतः सकंप तथा सदा काल सर्वांश रूप से सकंप भी रहते हैं । नोट- क्रियानेक प्रकारा हि पुद्गलानामिवात्मनाम् ।
-तत्त्वश्लो . अ ७ । सू ४६
सामान्यतः क्रिया के अनेक भेद होते हैं। पुद्गलानामपि द्विविधा क्रिया विरसा प्रयोगनिमित्ता च ।
-तत्त्वराज० अ ५। ७ । १७ पुद्गलों की भी दो प्रकार की क्रिया होती है। १-वैस्रसिक और प्रयोगिक । निमित्त अपेक्षा से भेद है। '३ सूक्ष्म परिणमन अपेक्षा •४ बादर परिणमन अपेक्षा ( पाठ के लिए देखो क्रमांक २१)
सूक्ष्म परिणत स्कंध तथा बादर परिणत स्कंध पुद्गल की स्थिति जघन्य एक समय की, उत्कृष्ट असंख्यात काल की होती है । •६८ स्कंध पुद्गलों का ज्ञान .१ कमपुद्गलानामतिसूक्ष्मतया चक्षुरादीन्द्रियाऽगोचरत्वात् ।
-कर्मग्र० भा १ । गा ३२ । टीका । पृ. ४६ कर्म पुद्गल सूक्ष्म होने के कारण चक्षुरिन्द्रिय के अगोचर है । .२ जीव और पुद्गलों का ज्ञान
अस्थि णं आउसो ! 'घाणसहगया पोग्गला' ? हंता अत्थि, 'तुब्भे गं आउसो! घाणसहगयाणं पोग्गलाणं रुवं पासह' ? णो इण? समर्छ ।
अस्थि णं आउसो ! 'अरणिसहगए अगणिकाए' ? हंता अस्थि । 'तुब्भे णं आउसो ! अरणिसहगयस्स अगणिकायस्स 'रूवं पासह' ? णो इण8 सम?।
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