________________
पुद्गल-कोश
५२३ .२ स्कंध पुद्गल और सकंपता-निष्कपता की अपेक्षा स्थिति ___ १ दुपएसिए गं भंते ! खंधे देसेए कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं आवलियाए असंखेज्जइभागं । [सू २१८]
द्विप्रदेशी स्कंध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्मातवें भाग तक देश कंपक रहता है।
सव्वेए कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेण आवलियाए असंखेज्जइभाग। [सू २१९]
द्विप्रदेशी स्कंध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक सर्व कंपक रहता है।
निरए कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! जहन्नेणं एवक समयं, उक्कोसेणं असंखेज्ज कालं । एवं जाव अणंतपएसिए [सू २२०] ।
द्विप्रदेशी स्कंध जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग तक निष्कंपक रहता है।
इसी प्रकार तीन प्रदेशी स्कंध यावत् अनंत स्कंध के सकंपक और निष्कंपक के विषय में समझना चाहिए ।
.२ दुप्पएसिया णं भंते ! खंधा देसेया कालओ केवच्चिरं ? सव्वद्ध। [सू २२४ ]
सव्वेया कालओ केवच्चिरं होंति ? सव्वद्ध। [ मू २२४ ]
निरेया कालओ केवच्चिरं होति ? सन्धद्ध। एवं जाव अणंतपएसिया। [ सू २२५]
-भग० श २५ । उ ४ । सू ११२ से ११४ सकंप द्विप्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध पुद्गल (बहुवचन) की स्थिति सदा काल होती है।
निष्कप द्विप्रदेशी स्कंध ( बहुवचन ) यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध पुदगल (बहुवचन ) की स्थिति सदा काल होती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org