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पुद्गल-कोश •३ तीन भेद
(कइविहा णं भंते ! पोग्गला पन्नत्ता ? गोयमा ! ) तिविहा पोग्गला पन्नत्ता, तंजहा-पओगपरिणया, मीसापरिणया वीससापरिणया।
-ठाण• स्था ३ । उ ३ । सू १८६ । पृ० २२५ टीका-प्रयोगपरिणताः-जीवव्यापारेण तथाविधपरिणतिमुपनीता:, यथा पटादिषु कर्मादिषु वा, 'मीसं त्ति प्रयोगविस्राभ्यां परिणताः, यथा पटपुद्गला एव प्रयोगेण पटतया विस्रसापरिणामेन चाभोगेऽपि पुराणतयेति, वित्रसा-स्वभावः तत्परिणता अभेन्द्रधनुरादिदिति ।
-ठाण. स्था ३ । उ ३ । सू १८६ । टीका
पुद्गल के तीन प्रकार है, यथा (१) प्रयोग परिणत जो-जीव के व्यापार से तथाविध परिणत को प्राप्त हुए प्रयोग परिणत पुद्गल है-जैसे वस्त्रादि में अथवा कर्मादि में जीव के व्यापार की सापेक्षता है । (२) मिश्रपरिणत-प्रयोग और स्वभाव दोनों के मिश्र से परिणाम को प्राप्त हुए पुद्गल मिश्र परिणत पुद्गल कहलाते हैं । जैसे वस्त्र के पुद्गल ही प्रयोग परिणाम से वस्त्र रूप से और विस्रसा परिणत है।
३ विस्रसा परिणत-ऐसे पुद्गल जिनका जीव का सहाय नहीं और स्वयं परिणत है-जैसे बादल, इन्द्रधनुष आदि । स्कंध पुदगल के भेद
तिविहा पोग्गला पण्णत्ता, तंजहा-पओग परिणया, मिससा परिणया, विससा परिणया।
-भग० श८ । उ १ । सू २ । पृ० ५३० स्कंध पुद्गल के तीन भेद
(१) प्रयोग परिणत-वे पुद्गल जिनको जीवों ने ग्रहण करके परिणमन किया है उन्हें प्रयोग परिणत पुद्गल कहते हैं। आधुनिक विज्ञान इनको Organic Matters कहता है ।
(२) मित्र परिणत-वे पुद्गल जो जीव द्वारा परिणमन हुए हैं लेकिन अब जीव रहित होकर या जीव द्वारा निर्जरित होकर स्वयं परिणमित हो रहे हैं उनको मिश्र परिणत पुद्गल कहते हैं। जहाँ पुद्गल में स्थूल समय की अपेक्षा से जीव द्वारा
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