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४ - भाव की अपेक्षा
एक गुण कृष्णवर्णवाले परमाणु व स्कंध पुद्गलों को एक वर्गणा होती है । इसी प्रकार द्विगुण यावत् अनंत गुण कृष्णवाले पुद्गलों की एक वर्गणा होती 1 इसी प्रकार नील, रक्त, पीत तथा शुक्ल वर्ण के पुद्गलों के विषय में समझना चाहिए ।
इसी प्रकार दो गंध, पाँच रस तथा आठ स्पर्श के विषयों में समझना चाहिए ।
जघन्य प्रदेशी स्कंधों ( द्विप्रदेशी स्कंध पुद्गल ) की एक वर्गणा होती है । उत्कृष्ट प्रदेशी स्कंधों ( उत्कृष्ट संख्या से अनंत प्रदेशी स्कध पुद्गल ) की एक वर्गणा होती है तथा अजघन्य - अनुत्कृष्ट ( मध्यम ) प्रदेशी स्कंधों को एक वर्गणा होती है । ८वर्गणा
पुद्गल-कोश
अथोल्लंघ्याखिला एताः सिद्धानं तांशसंमितेः । परमाणुभिरुद्गतः ॥१३॥
अभव्येभ्योऽनंतगुणः स्कंधेर्याः स्युः सभारब्धा वगणा विस्रसावशात् । जघन्या ग्रहणार्हाः स्यु-स्ताः किलौदारिकोचिताः ॥१४॥ आभ्यश्चैककाणुवृद्धा मध्यमा ग्रहणोचिताः । तावद् ज्ञेया यावदौदा रिकात्कृष्ट वर्गणाः ॥ १५ ॥ उत्कृष्टौवारिकाभ्य श्चकेनाप्यणुनाधिका ।
भवंति पुनरप्यौदा रिकानह जघन्यतः ॥ १६॥ ततश्चैकेकाणुवृद्धा अनह मध्यमा बुधः । तावद् ज्ञेया पुनर्याव दुत्कृष्टाः स्युरन हकाः ॥१७॥ एता बह्वणुनिष्पन्न - त्वात्सूक्ष्माः परिणामतः । तत औदारिकानर्हाः स्थूलस्कंधोद्भवं हि तत् ॥ १८ ॥ यथा यथाणुभूयस्त्वं परिणामस्तथा
तथा ।
स्थूलमिष्यते ॥ १९ ॥
प्रचुराणुकाः ।
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स्कंधेषु सूक्ष्मः स्यात्तषां - मल्पत्वे औदारिकापेक्षयेव फिलता:
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स्युः सूक्ष्मपरिणामाश्च क्रियापेक्षया पुनः ॥ २० ॥ स्वल्पाणुजातत्वात्स्थूल परिणामा अमस्ततः । वेकियानुचिताः सूक्ष्म स्कंधोत्थं प्राच्यतो हि तत् ॥२१॥
- लोकप्र० सर्ग ३५ /गा १३ से २१ / पृ० ६५१-५२
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