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पुद्गल-कोश सूक्ष्म परिणाम वाली है तथा आहारक की अपेक्षा वह स्थूल परिणाम वाली और अल्प परमाणुवाली है। २ वर्गणा (क) जघन्यमध्यमोत्कृष्टा-स्तत आहारकोचिताः।
तदनहस्तितस्त्रेधा ततश्च तेजसोचिताः॥२५॥ ततस्तथैव विविधा-स्तैजसानुचितास्ततः । वेधा भाषोचिता भाषा-नुचिताश्च ततस्त्रिधा ॥२६॥ आनप्राणो चितास्त्रेधा तवनहस्तितस्त्रिधा। मनोहस्तिवन श्च विविधा स्युस्ततः क्रमात् ॥२७॥ जघन्यमध्यमोत्कृष्टाः कर्मणामुचितास्ततः। गवंति वर्गणास्त्रेधा याभ्यः कर्म प्रजायते ॥२८॥ इतोऽप्यूवं ध्रुवाचित्ता-दयो या संति वर्गणा। नार्थाभावात्ता इहोक्ताः प्रोक्तास्त्वावश्यकादिषु ॥२९॥
-लोकप्र. सर्ग ३५ गा २५ से २९ । पृ. ६५३ उसके बाद आहारक के योग्य जघन्य-मध्यम और उत्कृष्ट वर्गणा जाननी चाहिए। उसके बाद उसके योग्य तीन प्रकार की वर्गणा जाननी चाहिए। उसके बाद तेजस के योग्य तीन प्रकार को वर्गणा जाननी चाहिए ।
इसके बाद क्रमशः तैजस के अयोग्य तीन प्रकार की वर्गणा, इसके बाद भाषा के योग्य तीन प्रकार की वर्गशा, इकके बाद भाषा के अयोग्य तीन प्रकार की वर्गणा, इसके वाद आनप्राण -श्वासोच्छवास के योग्य तीन प्रकार की वर्गणा, इसके बाद श्वासोच्छवास के अयोग्य तीन प्रकार की वर्गणा, इसके बाद मन के बोग्य तीन प्रकार की वर्गणा, इसके बाद मन से अयोग्य तीन प्रकार को वर्गणा होती है।
इसके बाद जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट-तीन प्रकार की कार्मण के योग्य वर्गणा जाननी चाहिए, जिसके द्वारा कर्म का बंध होता है ।
इसके बाद दूसरी ध्र व अचित्तादिक वर्गणा जाननी चाहिए।
नोट-कर्मप्रकृति और प्रज्ञापना आदि के अभिप्राय से तेजसादि वर्गणाओं में स्सिग्ध, उष्ण, रुक्ष और शीत ये-चार स्पर्श होते है।
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