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पुद्गल-कोश
५-एक देश की अपेक्षा, सद्भाव पर्याय की अपेक्षा और एक देश की अपेक्षा से सद्भाव और असद्भाव-इन दोनों पर्यायों की अपेक्षा से द्विप्रदेशी स्कध पुद्गल सद्रूप और असद्रूप उभय होने से अवक्तव्य है ।
६-एक देश को अपेक्षा, असद्भाव पर्याय की अपेक्षा और एक देश के सद्भाव असद्भाव रूप उभय पर्याय की अपेक्षा द्विप्रदेशी स्कंध असद्रूप और अवक्तव्य रूप है।
विवेचन-आत्मा का अर्थ है सद्रूप और अनात्मा का अर्थ है असदरूप । किसी भी वस्तु को एक साथ सद्रूप और असद्रूप नहीं कहा जा सकता। उस दशा में वस्तु अवक्तव्य कहलाती है। स्व-पर पर्यायों से आत्मस्वरूप और अनात्मरूप अर्थात् सद् और असद्रूप-इन दोनों द्वारा एक वार कहना अशक्य है ।
अस्तु-द्विप्रदेशी स्कंध के विषय में छ.भंग बनते हैं, इनमें से पहले के तीन भंग सम्पूर्ण स्कंध की अपेक्षा से बनते हैं। ये असंयोगी है। बाकी के तीन भग देश की अपेक्षा है जो कि द्विसंयोगी है द्विप्रदेशी स्कंध होने से उसके एक देश की स्वपर्यायों द्वारा सद्रूप की विवक्षा की जाय और दूसरे देश की पर पर्यायों द्वारा असदरूप से विवक्षा की जाय, तो द्विप्रदेशी स्कंध अनुक्रम से कथंचित् सदरूप और क्थचत् असवप होता है। उसके एक देश की स्वपर्यायों द्वारा सदरूप से विवक्षा की जाय और दूसरे देश में सदसद् उभय रूप से विवक्षा की जाय, तो कथंचित् सद्रूप और कथंचित् अवक्तव्य कहलाता है। उस द्विप्रदेशी स्कध के एक देश की पर्यायों द्वारा असद्रूप से विवक्षा की जाय और दूसरे देश की उभय रूप से विवक्षा की जाय, तो असद्रूप और अवक्तव्य कहलाता है। कथंचित् सद्रूप, कथंचित् असद्रूप और कथंचित् अवक्तव्य रूप-इस प्रकार सातवां भंग द्विप्रदेशी स्कंध में नहीं बनता है। क्योंकि उसके केवल दो अंश ही है। त्रिप्रदेशी स्कधों में तो सातों भग बनते हैं।
दूसरी तरह से आत्मा के तीन भेद है
नोट-१ जो अपनी पर्यायों की अपेक्षा सत्स्वरूप विद्यमान हो उसे आत्मा कहते हैं।
२-जो पर पर्यायों की अपेक्षा असत्स्वरूप हो, अविद्यमान हो, उनको नोआत्मा कहते हैं।
३-जो स्वपर्यायों की अपेक्षा सत्स्वरूप है और परपर्यायों की अपेक्षा असत्स्वरूप है ऐसा मिश्ररूप जो शब्दों से कहा नहीं जाय सके उसे अवक्तव्य कहते हैं।
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