________________
५१०
पुद्गल-कोश
___ द्विप्रदेशी दो स्कंध भेद को प्राप्त होकर जब पूर्व संबद्ध परमाणुओं के साथ या अन्य परमाणुओं के साथ समागम को प्राप्त होते हैं तब द्विप्रदेशी वर्गणा स्वस्थान में भेद-संघात से उत्पन्न होती है ।
स्कंध के टूटने का नाम भेद है। परमाणुओं के समागम का नाम संघात है और स्कंध का भेद होकर मिलने का नाम भेद-संघात है।
मात्र सान्तर-निरंतर वर्गणा को लेकर अशून्य रूप जितनी वर्गणाए हैं वे सब स्वस्थान की अपेक्षा भेद-संघात से ही उत्पत्ति होती है।' इतनी बात अवश्य है कि किन्हीं सूत्र-पोथियों में सान्तर-निरंतर वर्गणा की उत्पत्ति भी पूर्व की वर्गणाओं के संघात से, उपरिम वर्गणाओं के भेद से और स्वस्थान की अपेक्षा भेद-संघात से बतलाई है।
__ वादर और सूक्ष्म निगोद वर्गणा में अन्तर यह है कि बादर निगोद वर्गणा दूसरों के आश्रय में रहती है और सूक्ष्म निगोद वर्गणा जल में, स्थल में व आकाश में सर्वत्र बिना आश्रय के रहती है।
उत्कृष्ट अनंतप्रदेशी द्रव्य वर्गणायें एक अंक के मिलाने पर जघन्य औदारिक वर्गणा होती है। यह वर्गणा जीवों के द्वारा ग्राहय है। फिर एक अधिक के क्रम से अभव्यों से अनंतगुणे और सिद्धों के अनंतवें भाग प्रमाण भेदों के जाने पर अतिम औदारिक वर्गणा होती है। विशेषों का प्रमाण अभव्यों से अनंतगुणा और सिद्धों के अनंतवें भाग प्रमाण होता हुआ भी उत्कृष्ट औदारिक द्रव्य वर्गणा के अनंतवें भाग प्रमाण है। •७ वगणा
ओरालिय-वेउब्विय-आहारशरीरपाओग्गपोग्गलक्खंधाणं आहारदव्यवग्गणा वि सण्णा। एवमेसा पंचमी वग्गणा ॥५॥
-षट् खण्ड ५, ६ । सू ९९ । टीका । पु १४ अर्थात् औदारिक, वैक्रियिक और आहारक शरीरों के योग्य पुद्गल स्कंधों की आहार द्रव्य वर्गणा संज्ञा है । इस प्रकार यह पांचवीं वर्गणा है । ( १- अणुवर्गणा, २- संख्याताणुवर्गणा, ३ --असंख्याताणुवर्गणा, ४- अनताणुवर्गणा तथा ५- अहार वर्गणा ।)
१-षट् खंडागम पु १४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org