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पुद्गल-कोश
१६ - एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा, नो आत्मा और आत्मा नो आत्मा उदय रूप से अवक्तव्य है ।
१७- एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से, तदुभय पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा, नो आत्मा और आत्माएं, नो आत्माएं उभय रूप से अवक्तव्य है ।
१८- - एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, बहुत देशों के आदेश से असद्भाव पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभय पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्मा नो आत्माएं और आत्मा नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य है ।
१९- - बहुत देशों के आदेश सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से एक देश के आदेश से असद्भाव पर्याय को अपेक्षा से और एक देश के आदेश से तदुभव पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कंध आत्माएं, नो आत्मा और आत्मा नो आत्मा उभय रूप से अवक्तव्य हैं ।
इस लिये ऐसा कहा जाता है कि चतुष्प्रदेशी स्कंध कथंचित् आत्मा है, कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो आत्मा और कथंचित् अवक्तव्य है । इस निक्षेप में पूर्वोक्त सभी भंग यावत् नो आत्मा है, तक कहना चाहिए ।
नोट - चतुष्प्रदेशी स्कंध में भी त्रिप्रदेशी स्कंध के समान जानना चाहिए । किन्तु यहाँ उन्नीस भंग बनते हैं । उनमें से तीन भंग सम्पूर्ण स्कंध की अपेक्षा से असंयोगी होते हैं । बाद में बारह भंग द्विसंयोगी होते हैं । शेष चार भंग त्रिसयोगी होते हैं ।
-४ पांच प्रदेशी स्कंध की आत्मा
- ५ छः प्रदेशी स्कंध यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध की आत्मा सात प्रदेशी
आया भंते! पंचपएसिए बंधे अन्ने पंचपएसिए बंधे ? गोयमा ! पंचपएसिए बंधे सिय आया १ सिय नो आया २ सिय अवत्तव्यं आयाइ य नो आयाइ य सिय आया य नो आया य ४ सिय अवत्तव्वं (४) आया यनो आया य ४ ( नो आया य अवत्तव्वेण य ) तियगसंजोगे एक्को ण
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