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.६५ वर्गणा
१. परिभाषा / अर्थ
(क) सजातीयपुद्गलानां
वर्गणोच्यते ।
समूहो मौक्तिकानां मिथस्तुल्य गुणानामिव राशयः ॥ कुचिकर्णी यथा नाना-वर्णा संख्येयधेनुकः । चत्र गवां सवर्णानां समुदायान् पृथक् पृथक् ॥ तथाकृते चाभूवंस्ताः सुज्ञानाः सुग्रहा यथा । तथा तीर्थङ्करोद्दिष्टा: पुद्गल वर्गणा अपि ॥
पुद्गल - कोश
मोतियों की राशि की तरह परस्पर श्वेतादि तुल्य गुणवाले सजातीय पुद्गलों के समूह को वर्गणा कहते हैं ।
दवावग्गणाहि
जिस प्रकार अलग-अलग वर्णवाली असंख्यात गायों के समूह में से एक समान वर्णवाली गायों के समूह को कुचिकर्णनामक सेठ अलग-अलग रखता था— उस प्रकार करने से उन गायों का उसको ज्ञान रहता था - उसी प्रकार तीर्थंकर कथित पुद्गल वर्णणामें भी सम्यग् प्रकार से समझी जा सकती है और सम्यग् प्रकार से ग्रहण को जा सकती है ।
(ख) कुइयण्णगोविसेसोवलक्खणोवम्मओ
- २ अणुवर्गणा परिभाषा / अर्थ
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-- लोकप्र० सर्ग ३५ । गा ४ से ५ । पृ० ६५०
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पोग्गलकार्य
सजातीयवस्तुसमुदायो वर्गणा, समूहो, वर्गः, राशिः इति पर्यायाः ।
- विशेभा० गा ६३५ । टीका
विणेयाणं । पयंसेंति ॥
- विशेभा० गा ६३२
(क) वग्गणपरूणदाए इमा एयपदेसिया परमाणुपोग्गलदव्ययग्णगा
णाम ।
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- षट्० खण्ड ५, ६ । सू ७०७ । पु १४ पृ० ५४२
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