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पुद्गल-कोश तजसाद्या वर्गणा अ-प्येवं वर्णादिभिः स्मृताः । स्पर्शतस्तु चतुःस्पर्शा-स्तेषां मृदुलधुधं वो ॥४३॥ अन्यौ द्वौ च स्निग्धशीतौ स्निग्धोष्णौ वा प्रकोत्तितौ। रूक्षौष्णौ रूक्षशीतो वा विज्ञ वैद्यौ यथागमं ॥४४॥
अयं पंच संग्रहवृत्तिशतकबृहट्टीकाद्यभिप्रायः। टीका-कर्मप्रकृतिप्रज्ञप्त्याद्यभिप्रायेण त्वेतासु स्निग्धोष्णरूक्षशीतरूपमेव स्पर्शचतुष्टयं स्यान्नान्यदिति ।
-लोकप्र० । सर्ग ३५ । गा ४१ से ४४ । पृ. ६५५
औदारिक से आहारक तक की वर्गणायें अष्टस्पर्शी, पंचवर्णी, पचरसवाली और दो गंधवाली होती है।
यद्यपि परमाणु-एक वर्ण, एक रस, एक गंध और दो स्पर्शवाला होता है। आठ स्पर्श जो कहे गये हैं वह समुदाय ( स्कंध ) की अपेक्षा कहे गये हैं।
तेजसादि वर्गणा भी इसी प्रकार वर्ण, गंध, रस वाली होती है। (प्रथम की तीन वर्गणा की तरह पाँच वर्ण, पाँच रस-दो गंध वाली होती है। ) परन्तु स्पर्श की अपेक्षा चतुःस्पर्श वाली होती है। उसमें मृदु और लघु-ये दो स्पर्श निरंतर होते हैं और दूसरे दो स्निग्ध और शीत अथवा स्निग्ध और उष्ण स्पर्श होते हैं। अथवा रूक्ष और उष्ण अथवा रूक्ष और शीत-ये दो स्पर्श होते हैं।
.६ नयको अपेक्षा वर्गणा का विवेचन
वग्गणपरूवणदाए ताणि चेव तिण्णि अणियोगद्दाराणि । तत्थपरूवणवाए अस्थि जहणिया वग्गणा। एवं दव्वं जाव उक्कस्सवग्गणेत्ति। एवं परूवणा गदा।
पमाणं वुच्चदे-अणंतेहि सरिसधणियपरमाणूहि एगा वग्गणा होदि, दव्वट्ठियणयावलंबादो। पज्जवट्टियणए पुण अवलंबिदे वग्गो वि वग्गणा होदि। णिवियप्पवग्गस्स कथं वग्गणतं? ण, उवरिमएगोलि पेक्खिदूण सवियप्पस्स वग्गणतं पडि विरोहाभावादो। विरोहे वा महाखंडवग्गणाए
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