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पुद्गल-कोश
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'६२ स्कंध पुद्गल के भेद
१ अणवः स्कंधाश्च ।
-तत्त्व० अ ५ । सू २५
राजटीका-उभयात्र जात्यापेक्षं बहुवचनं-अनन्तभेदा अपि पुद्गला अणुजात्या स्कन्धजात्या।
अर्थात् अणवः स्कन्धाः इन वहुवचनात्मक शब्दों का व्यवहार यहां पर जातिअपेक्षा से किया गया है। अणु-जातियों, स्कन्ध जातियों की अपेक्षा पुद्गल अनन्त भेद वाले होते हैं।
राजटीका-द्वविध्यमापद्यमानाः सर्वे गृहयंत इतितदजात्यावानन्त भेदसं सूचनार्थ बहुवचनं क्रियते ।
-तत्त्व० अ ५ । सू २५
अर्थात् अणु तथा स्कन्ध-इन दो भेदों में सभी पुद्गल ग्रहण हो जाते हैं लेकिन इन दो भेदों की जातियों के आधार पर अनन्त भेदों को बतलाने के लिए ही संसूचनार्थ बहुवचनों का प्रयोग किया गया है । २ पुद्गल के दो भेद समस्तपुद्गला एव द्विविधाः परभाणवः स्कन्धाश्चेति ।
-तत्त्व० अ ५ । सू २५ की सिद्धसेनगणि टीका परमाणु तथा स्कन्ध-परमाणु-परमाणु परस्पर में बन्धन को प्राप्त होकर जिस समवाय या समुदाय को प्राप्त होते हैं, उसे स्कन्ध कहते हैं। स्कनधास्तु वद्धा एवेति परस्पर संहृत्या व्यवस्थिता।
–तत्त्व० अ ५ । सू २५ के भाष्य पर सिद्धसेनगणि टीका ते एते पुद्गलाः समासतो द्विविधा भवंति, अणवः स्कन्धाश्च ।
तत्त्व० अ५ । सू २४ का भाष्य तथा ५ । २५ का सूत्र उपयुक्त व्यक्तिगत परमाणु तथा स्कन्धनामीय परमाणु समवाय की अपेक्षा से पुद्गल के दो भेद-परमाणु और स्कंध होते हैं ।
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