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पुद्गल-कोश
४८३ परिणमन तथा स्वकीय परिणमन (Self-Transfarmation or Modifications ) एक साथ हो रहे हैं वहाँ पुद्गल में मिश्र परिणमन कहा जा सकता है।
(३) वे पुद्गल जिनमें स्वकीय अपेक्षा से परिणमन हो रहा है या जिसके परिणमन में किसी जीव का सहाय्य नहीं है उनको विस्रसा परिणत पुद्गल कहते हैं। •४ पुद्गल द्रव्य के चार भेद
जुत्तउ भिण्ण-वण्ण-विण्णासें। खंधु देसु अद्धद्ध-पएसु वि॥
परमाणुउ अविहाइ असेसु वि । घत्ता-तं सुहुमु वि थूलु-थूलु सुहुमु पुणुथूलु भणु। थूलाणवि थूलु चउ-पयारु महु मुणइ मणु ॥
वीरजि० संधि १२ । का ९ रूप की अपेक्षा पुद्गल द्रव्य कृष्णादि नाना वर्णों से युक्त है। प्रमाण की अपेक्षा वह स्कंध, देश, प्रदेश, अर्ध प्रदेश, अर्धा, प्रदेश आदि रूप से विभाज्य होता हुआ परमाणु तक पहुँचता है, जहाँ उसका पुनः विभाजन नहीं हो सकता। ___ इस प्रकार यह पुद्गल सूक्ष्म भी है, स्थूल भी, स्थूल सूक्ष्म भी व स्थूल-स्थूल । इस प्रकार पुद्गल द्रव्य चतुर्भेद रूप जाना जाता है। •५ पुद्गल विभाजन के प्रकार
(क) विश्लेषः भेदः-सच पचधा उत्करः, चणः खण्डः, प्रतरः, अनुतटिका।
-जैनसिदो० प्र १ । सू १२ की टीका पुद्गल द्रव्य का विभाजन पांच प्रकार से किया जाता है-उत्कर, चूर्ण, खण्ड, प्रतर और अनुतटिका ।
(१) उत्कर-मूग की फली का टूटना । (२) चूर्ण-गेहूँ आदि का आटा । (३) खण्ड-पत्थर के टुकड़े। (४) प्रतर-अभ्रक के दल । (५) अनुतटिका-तालाब की दरारें।
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