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पुद्गल-कोश
४२९ स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों के कारण संयोग होने से ही बंध होता है- ऐसा एकान्त नियम नहीं है।
पुद्गल के बंधन के नियमों में गुण शब्द के दो अर्थ ग्रहण किये गये हैं(१) पुद्गल के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श गुण तथा (२) इन गुणों की शक्ति अंश । यथा-एक गुण काला, दो गुण काला, अनेक गुण काला, अनंत गुण काला वर्ण । इसी प्रकार यहाँ पर एक गुण स्निग्ध, दो गुण स्निग्ध, अनेक गुण स्निग्ध, अनंत गुण स्निग्ध तथा एक गुण रूक्ष, दो गुण रूक्ष, अनेक गुण रूक्ष, अनंत गुण रूक्ष ग्रहण करना चाहिए।
हमने गुण की शक्ति के अंश के स्थान पर गुणांश शब्द का व्यवहार किया है। (ग) मुत्तो रूवादिगुणो बज्झदि फासेहिं अण्णमणेहिं ।
-प्रव० अ २ । गा ८१ टीका-मूर्तयोहि तावत्पुद्गलयो रूवादिगुणयुक्तत्वेन यथोदितस्निग्धरूक्षत्वस्पर्शविशेषादन्योन्यबंधोऽवधार्यते। (घ) णिद्धा वा लुक्खा वा अणुपरिणामा समा व विसमावा ।
समवो दुराधिगा जदि बझंति हि आदिपरिहीणा ॥ णिद्धत्तणेण दुगुणो चदुगुणणिद्ध ण बंधमणुभवंति । लुक्खेण वा तिगुणिदो अणु बज्झदि पंचगुणजुत्तो॥
-प्रव० अ २ । गा ७३-७४ टीका-समतो द्वयधिकगुणद्धि स्निग्धरूक्षत्वाद् बंधइत्युत्सर्गः, स्निग्धरूक्षद्वयधिकगुणत्वस्य हि परिणामकत्वेन बंधसाधनत्वात् । न खल्वेकगुणात् स्निग्धरूक्षत्वाबंध इत्यपवादः एक गुणस्निग्धरूक्षत्वस्य हि परिणम्य परिणामकत्वाभावेन बंधस्यासाधनत्वात् x x x। यथोदितहेतुकमेव परमाणूनां पिंडत्वमवधार्य द्विचतुर्गुणयोस्त्रिपंचगुणयोश्च द्वयोः स्निग्धयोः द्वयोरूक्षयोद्धयोः स्निग्धरूक्षयोर्वा परमाण्वोर्बन्धस्य प्रसिद्धः। (च) णिद्धस्स णि ण दुराधिएण बुक्खस्स लुक्खेण दुराधिएण। णिद्धस्स लुक्खेण हवेइ बंधो जहण्णवज्जो विसमे समे वा॥
-गोजी० गा ६१४
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