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पुद्गल-कोश .५६ पुद्गल द्रव्य-निष्क्रिय-नित्य भी है
.१ पर्यायाथिकगुणभावे द्रव्याथिकप्रधान्यात् सर्वे भावा अनुत्पादा व्ययदर्शनात् निष्क्रिया नित्याश्च ।
-- तत्त्व राज. अ ५। ७ । २५
द्रव्याथिक नय की प्रधानता एवं पर्यायाथिक नय को गौणता से द्रव्य को निष्क्रिय कहा जा सकता है। २ पुद्गल उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य गुण वाला है
भगवानपि व्याजहार प्रश्नत्रयमात्रेणद्वादशांगप्रवचनार्थ सकलवस्तुसंग्राहित्वात् प्रथमतः किलगणधरेभ्यः- 'उप्पणेति वा विगमेति वा धुवेतिवा।
-तत्त्व० ५। ६ सिद्धसेनगणि टीका ३ जीव और पुद्गल को गति
(क) देवे ण भंते ! महिड्डिए जाव महाणुभागे पुब्वामेव पोग्गलं खिवित्ता पभू तमेव अणुपरियट्टित्ताणं गिण्हित्तए ? हंता, पभू, से केण?णं भंते ! एवं वुच्चइ-देवेणं महिड्डिए जाव गिण्हित्तए? गोयमा ! पोग्गले खित्ते समाणे पुवामेव सिग्घगई भवित्ता तओ पच्छा मंदगई भवइ, देवेणं महिड्डिए जाव महाणुभागे पुपि पच्छावि सोहे सोहगई तुरिए तुरियगई चेव से तेण?णं गोयमा ! एवं वच्चाई जाव अणुपरियट्टित्ताणं गेण्हित्तए।
-जीवा० प्रत्ति ३ । ४ सू ९८८
-भग० श ३ । उ २ । सू २२, २३ महावृद्धिवाला देव पहले फेकें हुए पुद्गल (अनंत प्रदेशी स्कंध ) को उसके पीछे आकर ग्रहण कर सकता है क्योंकि जब पुद्गल फेंका जाता है तब प्रथम उसकी गति शीघ्र होती है और पश्चात् उसकी गति मंद हो जाती है। महाऋद्धिवाला देव पहले भी और पीछे भी शीघ्र और शीघ्रतर गति वाला होता है, त्वरित और त्वरिततर गति वाला होता है। अतः फेंके हुए पुद्गल के पीछे आकर उसे ग्रहण कर सकता है।
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