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पुद्गल - कोश
इसी प्रकार ( संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी तथा अनंत प्रदेशी स्कंध ) यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध को गति अनुश्रेणी होतो है, विश्रेणी गति नहीं होती है ।
४ पुद्गल की गति
देशान्तर प्रापिणी गति ।
एक समयो विग्रहः लोकांतप्रापिणी गति ।
परणामेरनियतताः ।
पुद्गलानामपि गतिः स्थितीति ।
- तत्त्व० अ २ । सू २७, २९ टीका
नियम सामान्य से पुद्गल की देशान्तर प्रापिणी गति अनुश्रेणी होती है । लेकिन प्रयोग परिणाम षक्षात् विश्रेणी भी हो सकती है ।
•५ स्कंध पुद्गल और विहायोगति
( पाठ के लिए देखो क्रमांक १२८.५ )
(१) द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनत प्रदेशी स्कंध की परस्पर स्पर्श करते हुए जो गति होती है उसे स्पृशद् गति कहते हैं ।
( २ ) इसके विपरीत परस्पर स्पर्श किये बिना द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध की जो गति होती है उसे अस्पृशद गति कहते हैं।
(३) द्विप्रदेशी स्कंध यावत् अनंत प्रदेशी स्कंध की गति को पुद्गल गति कहते हैं ।
(४) छाया भी अनंत प्रदेशी स्कंध है । छाया के अवलम्बन से जो गति होती है उसे छाया गति कहते हैं अथवा छाया का आश्रय पाने के लिए जो गति होती है उसे छाया गति कहते हैं यथा - घोड़े की छाया, हाथी की छाया, मनुष्य की छाया, किन्नर की खाया, महोरग की छाया, गांधर्व की छाया, वृषभ की छाया, रथ की छाया, छत्र की छाया के अनुसार जो गति होती है उसे छाया गति कहते हैं ।
(५) छायानुपात गति - स्वकीय निमित्त पुरुषादि की गति के अनुसार छाया की गति । जिस प्रकार छाया पुरुषादि का अनुसरण करती है, किन्तु पुरुषादि छाया का अनुसरण नहीं करता है यह छायानुपात गति है ।
जिन स्कंध पुद्गलों की गति दूसरों की प्रेरणा से होती है उसे प्रणोदन गति कहते हैं । यथा वाण आदि की गति पर प्रेरणा से होती है ।
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