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पुद्गल-कोश स्कंध के अनंत भेद हैं, यथा-कितनेक द्विप्रदेशी स्कंध हैं, कितनेक तीन प्रदेशी स्कंध हैं, आदि ( यावत् ) कितनेक संख्यात प्रदेशी स्कंध है, कितनेक असख्यात प्रदेशी स्कंध है तथा कितनेक अनंत प्रदेशी स्कंध हैं ।
.५ पुद्गल अनंत है
सिद्धा निगोयजीवा, वणस्सई कालपुग्गला चेव । सव्यमलोगनहं पुण, तिवग्गिउ केवलदुगंमि ॥
-कर्म० भाग ४ गाथा ८५
सिद्ध, निगोद के जीव, वनस्पतिकाय, अतीत-अनागत काल के सर्व समय, पुद्गल, (स्कंध-परमाणु ) आकाश के प्रदेश, इन छः की प्रत्येक-प्रत्येक संख्या अनंत है। अतः पुद्गल द्रव्य की अपेक्षा अनंत है ।
'५३ स्कंध का अवगाहन क्षेत्र (क) जाववियं आयासं अविभागीपुग्गलाणुउट्टद्ध। तं खु पदेसं जाणे सव्वाणुट्ठाणदाणरिहं ।
-बृहद्० गा २७
टीका-सर्वाणूनां सर्वपरमाणूनां सूक्ष्मस्कंधानां च स्थानदानस्यावकाशदानस्याहम् योग्यं समर्थमिति ।x x x सुहुमेहि बादरेहिं य गंताणंतेहिं विविहेहिं ॥२॥x xx
जितना आकाश अविभागी पुद्गलाणु से रोका जाता है उसको सब परमाणुओं को ( सूक्ष्म स्कंधों को ) स्थान देने में समर्थ प्रदेश जानना चाहिए ।
सब परमाणु और सूक्ष्म स्कंधों को अवकाश देने के लिए आकाश का प्रदेश समर्थ है। इस प्रकार की अवगाहन शक्ति आकाश में है।
स्निग्ध और रूक्ष गुण के कारण अनेक परमाणु मिलकर द्विप्रदेशी स्कंधादि, संख्यात प्रदेशी स्कंध, असंख्यात् प्रदेशी स्कंध व ( सूक्ष्म ) अनंत प्रदेशी स्कंध बनते हैं । सूक्ष्मता के कारण वे आकाश के एक प्रदेश पर स्थित हो सकते हैं ।
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