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पुद्गल-कोश चार, पांच आदि परमाणुओं के बंधन से बने हुए स्कंध अशाश्वत होते हैं और सदा उपचय और अपचय को प्राप्त होते रहते हैं। बंधन के नियम
स्निग्धरूक्षत्वाद् बंधः ॥३२॥ न जघन्यगुणानाम् ॥३३॥ गुणसाम्ये सदृशानाम् ॥३४॥ द्वयधिकादिगुणानां तु ॥३५॥
-तत्त्व० अ ५। सू ३२ से ३५ मूल-स्निग्ध और रूक्ष स्पशं गुणों के कारण पुद्गलों का बंघ होता है । स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श गुण यदि जघन्य हों तो बंधन नहीं होता है।
यदि स्पर्श गुण सदृश हो तथा गुणों में साम्य हो तो बंधन नहीं होता है। इससे प्रतिफलित होता है कि यदि स्पर्श गुण विसदृश हों तो तथा गुणों में साम्य हो तो बंधन होता है।
यदि स्पर्श गुण सदृश हो तथा गुणों में किसी एक पक्ष में दो या दो से अधिक गुण की अधिकता हो तो बंधन होता है।
इन नियमों से प्रतिफलित होता है कि स्पर्श गुण विसदृश हों तो, जघन्य गुण को बाद देकर, सभी सम-विषम गुणों में बंधन होता है । •५२.३ बंधन के नियम
(क) समणिद्धपाए बंधो ण होति,
समलुक्खयाए वि ण होति ॥ वेमायणिद्धलुक्खत्तणण, बंधो उ खंधाणं॥ णिद्धस्स णिद्धण दुयाहिएणं, लुक्खस्स लुक्खेण दुयाहिएणं ॥ णिद्धस्स लुक्खेण उवेइ बंधो, जहण्णवज्जो विसमो समो वा॥
-पण्ण० प १३ । सू ९४८ । पृ० ४१०
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