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८ परमाणु
अविभाग्यः परमाणुः ।
पुद्गल - कोश
- जैसिदी ० प्र १ । सू १७
स्कंध का वह अन्तिम भाग जो विभाजित हो ही नहीं सकता, वह परमाणु है ।
• 9 अन्तादि अन्तमज्भं अन्तन्तं णेव इन्द्रियगेज्भं ।
जं दव्वं अविभागी तं परमाणु विजानीहि ॥
अर्थात् जिसका आदि, अन्त और मध्य एक ही है अर्थात् वह स्वयं ही आदि है, स्वयं ही मध्य है और स्वयं ही अन्त है, जो इन्द्रिय ग्राह्य नहीं है, जो अविभागी है, ऐसे द्रव्य को परमाणु जानना चाहिए ।
• २ सौक्षम्यावात्मादयः आत्ममध्याः आत्मांताश्च ।
४१३
- सर्वसि ० सू २५ । टीका
परमाणु सूक्ष्मता कारण स्वयं ही आदि, स्वयं ही मध्य और स्वयं ही अन्त है ।
- ३ एक रस, वर्ण, गन्ध, द्विस्पर्श शब्दकारणमशब्दम् । स्कन्धान्तरितं द्रव्यं परमाणु तं
विजानीहि ॥
- राज० ५। २५ । १
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• ५२ स्कंध पुद्गल और पर्याय
- ५२१ स्कंध पुद्गल और पर्याय के लक्षण
खंधसरूवेण पुणो, परिणामो सो विभावपज्जावो ।
परमाणु वह है - जिसमें एक वर्ण, एक गंध, एक रस और दो स्पर्श हो । जो शब्द का कारण हो पर स्वयं शब्द न हो और स्कंध से अतिरिक्त हो ।
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- पंचास्तकायसार ८८
- नियम० गा २८ । उत्तरार्ध
टीकाकार कहते हैं - पुद्गल की स्कन्ध रूप पर्याय अपने सजातीय परमाणुओं से बंध रूप है । इस लक्षण से अशुद्ध है अतः स्कंध पुद्गल विभाव पर्याय है ।
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