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४ निष्कंपत्व की अपेक्षा
निष्कंप परमाणु का स्वस्थान की अपेक्षा ( निष्कंपता ) अंतरकाल जधन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातभाग का होता है । यहाँ स्वस्थान से अभिप्राय है कि परमाणु परमाणुभाव में रहता हुआ निष्कंपता से सकंप होकर पुनः निष्कंपता को प्राप्त करता है इसमें जो काल लगता है वह निष्कंप परमाणु का स्वस्थान अंतरकाल है ।
पुद्गल - कोश
निष्कंप परमाणु का परस्थान की अपेक्षा ( निष्कंपता ) अंतरकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट असंख्यातकाल का होता है । यहाँ परस्थान से अभिप्राय है कि निश्चल परमाणु चलित होकर द्विप्रदेशादि स्कंध में अन्तभूत होकर जब उस स्कंध से निकलकर पुनः परमाणुभाव को प्राप्त कर निश्चल होता है— इसमें जो काल लगता है वह निष्कंप परमाणु का परस्थान अंतरकाल है ।
सकंप परमाणु पुद्गल ( बहुवचन ) का अंतरकाल नहीं होता है क्योंकि कंप परमाणु पुद्गल ( बहुवचन ) लोक में सर्वदा विद्यमान रहते हैं । अतः सकंप परमाणु पुद्गल ( बहुवचन ) का अंतरकाल नहीं होता है ।
इसी प्रकार निष्कंप परमाणु पुद्गल ( बहुवचन ) का भी अंतरकाल नहीं होता है ।
परमाणु सर्वांश रूप से ही कंपन करता है, निरंश नहीं होने के कारण देशतः कंपन नहीं करता है अतः सकंप परमाणु का स्वस्थान तथा परस्थान अंतरकाल ( देखें क्रमांक २२ ) पाठ अनुसार समझना चाहिए ।
सर्वांश रूप से सकंप परमाणु पुद्गल ( बहुवचन ) का अंतरकाल नहीं होता है । .४८ वर्गणा
- १ परमाणुवग्गणाम्मि ण अवरुक्कम्म च सेस गेज्झमहावबंधाणं बरमहियं सेसगं गुणियं ॥
अस्थि ।
टीका - परमाणुवर्णणायां जघन्योत्कृष्टे न स्तः अणूनां निर्विकल्पकत्वात् शेषद्वाविंशतिवर्गणा तु स्तः । तत्र ग्राहयानां आहारतेजोभाषामनः कार्मणवर्गणानां महास्कन्धवर्गणायाश्च उत्कृष्टानि स्वस्वजघन्याद्विशेषाधिकानि शेषषोडशवर्गणानां गुणितानि भवन्ति ।
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- गोजी ० गा ५९६
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