________________
४०६
पुद्गल - कोश
देश मृदु, अनेक देश शीत और अनेक देश उष्ण होते हैं । यह चौसठवां भंग है । इस प्रकार यहाँ भी ६४ भंग होते हैं ।
कदाचित् सर्व शीत, सर्व स्निग्ध, एक देश कर्कश, एक देश मृदु, एक देश गुरु और एक देश लघु होता है ।
मृदु, अनेक देश गुरु प्रकार यहां पर भी भंग होते हैं ।
इस प्रकार यावत् कदाचित् सर्वं उष्ण, सर्वं रूक्ष, अनेक देश कर्कश, अनेक देश और अनेक देश लघु होता है । यह चौसठवां भंग है । इस ६४ भंग होते हैं । ये सब मिलाकर छः स्पर्श सम्बन्धी ३८४
जब वह सात स्पर्श वाला होता है, तो - (१) सर्व कर्कश, एक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश शौत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है । ४-४ कदाचित् सर्वं कर्कश एक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश शीत एक देश उष्ण, अनेक देश स्निग्ध और अनेक देश रूक्ष होते हैं । ( इस प्रकार चार भंग कहने चाहिए ) । (२) कदाचित् सर्वं कर्कश, एक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश शीत, अनेक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के चार भंग । (३) कदाचित् सर्वं कर्कश, एक देश गुरु, एक देश लघु, अनेक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के चार भंग । ( ४ ) कदाचित् सर्व कर्कश, एक देश गुरु, एक देश लघु, अनेक देश शीत, अनेक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के चार भंग । ये सब १६ भंग होते हैं ।
(२) कदाचित् सर्व कर्कश,
एक देश गुरु, अनेक देश लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता है । इस प्रकार 'गुरु' पद को एक वचन में और 'लघु' पद को अनेक ( बहु ) वचन में रखकर पूर्ववत् सोलह भंग यहाँ भी कहने चाहिए । ( ३ ) कदाचित् सर्वं कर्कश, अनेक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के सोलह भंग । (४) कदाचित् सर्व कर्कश, अनेक देश गुरु, अनेक देश लघु. एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष के १६ भंग । ये ६४ भंग हुए | ये ६४ भंग 'सर्व कर्कश' के साथ बने हैं ।
(२) कदाचित् सर्वं मृदु, एक देश गुरु, एक देश लघु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष होता । इस प्रकार मृदु के साथ भी ६४ भंग होते हैं । (३) कदाचित् सर्वं गुरु, एक देश कर्कश, एक देश मृदु, एक देश शीत, एक देश उष्ण, एक देश स्निग्ध और एक देश रूक्ष - इस प्रकार 'गुरु' के साथ भी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org