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पुद्गल-कोश
४०९ अपेक्षा विशेषयों से यह भी कहा जा सकता है उक्त चार स्पर्श ही पुदगल के मौलिक स्पर्श है। परमाणु में उक्त चारों में से ही कोई दो अविरोधी स्पर्श मिलेंगे। कोई परमाणु शीत या उष्ण होगा या स्निग्ध और रूक्ष होगा। मृदु, कठिन, गुरु, लघु, इन चार स्पर्शों में से किसी भी अकेले परमाणु में कोई स्पर्श नहीं मिलता। परिणाम यह हुआ कि ये चार स्पर्श मौलिक न होकर संयोगज हैं। इन चार स्पर्शों के उत्पाद की कोई व्यवस्थित प्रक्रिया मिल नहीं रही है। परन्तु तथा प्रकार की नियामक प्रक्रिया होनी अवश्य चाहिए, नहीं तो क्या कारण हो सकता है कि असंख्य अनंत परमाणुओं के संयोग से बने हुए स्कंधों में कुछ चतुःस्पर्शी ही रह जाते हैं और कुछ आठ स्पर्शी हो जाते हैं। यह एक विशेष बात है कि जैन दर्शनिकों ने गुरुत्व (भारीपन ) और लघुत्व (हल्केपन ) को मौलिक स्वभाव नहीं माना है। यह भी विभिन्न परमाणुओं का संयोगज परिणाम है । खोज की दृष्टि से यह एक महत्व का विषय है-स्थूलत्व से सूक्ष्मत्व की ओर जाते हुए पुद्गल भारी आदि गुणों से रहित हो जाते और सूक्ष्मत्व से स्थूल की ओर जाते हुए उससे गुरुत्व, मृदुत्व आदि योग्यताएं उत्पन्न हो जाती है।
५१.१० तीनों काल की अपेक्षा स्कंध परिणाम
( एस णं भंते ! पोग्गले तीयमणतं सासयं समयं लुक्खी, समयं अलुक्खी, समयं लुक्खी वा अलुक्खी वा? पुट्विं च णं करणेणं अणेगवण्णं अणेगरूवं परिणामं परिणइ ? अहे से परिणामे णिज्जिण्णे भवइ, तओ पच्छा एगवण्ण एगरूवे सिया? हंता गोयमा! एस णं पोग्गले तीयं तं चेव जाव एगरूवे सिया। एस णं भंते ! पोग्गले पडुप्पण्णं सासयं समयं ? एवं चेव, एवं अणागयमणंतं पि) एस भंते ! खंधे तीयमणतं० ? एवं चेव, खंधे वि जहा पोग्गले ।
-भग० श १४ । उ ४ । सू १ से ३ । पृ. ६९९
किसी एक समय रूक्ष, किसी एक समय स्निग्ध तथा किसी एक समय रूक्षस्निग्ध-ये तीनों पद स्कंध पुद्गल पर घटित होते हैं। अतीत, वर्तमान तथा अनागत तीनों कालों में उपर्युक्त तीनों पद स्कंध पुद्गल पर घटित होते हैं। पूर्वकरण (प्रयोगकरण ) और विस्रसाकरण के द्वारा अनेक वर्णवाले और अनेक रूप वाले परिणाम रूप में परिणत हुआ, होता है व होगा और उस अनेक वर्णादि परिणाम के क्षीण होने पर वह स्कंध एक वर्ण वाला और एक रूप वाला हुआ, होता है और होगा । ( देखो क्रमांक ११.१४१)
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