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पुद्गल-कोश परमाणु शाश्वत भी है और अशाश्वत भी है। द्रव्यत्व की अपेक्षा से वह शाश्वत है। वर्ण-पर्याय (बाहय स्वरूप ) यावत् स्पर्श पर्याय आदि की अपेक्षा से अशाश्वत है, प्रति अण परिवर्तन शील है।
अस्तु परमाणु पुद्गल की तरह स्कंध पुद्गल भी द्रव्यतः शाश्वत है-भावतः अशाश्वत है।
नोट-प्रवाह की अपेक्षा तीनों काल में स्कंध का अस्तित्व रहेगा।
.२ एस णं पोग्गले अतीतमणंतं, सासयं भुवीति वत्तव्वं सिया। पोग्गले पडुप्पण्णं, सासयं समयं भवतीति वत्तव्वंसिया। पोग्गले अणागयमणंतं, सासयं समयं भविस्सतीति वत्तव्वं सिया। हंता गोयमा !
-भग० श १ । उ ४ । सू १९१-१९३ टोका-पोग्गलेति परमाणुरुत्तरत्रस्कन्धग्रहणात् ।
पुद्गल अनंत अतीत में लगातार था, वर्तमानकाल में लगातार है तथा अनंत भविष्यत् काल में लगातार रहेगा।
अतः स्कंध पुद्गल भी तीनों काल में शाश्वत है। प्रवाह की अपेक्षा स्कंध पुद्गल शाश्वत है। .३ नित्य तथा अवस्थित द्रव्य है नित्यावस्थितान्यरूपाणि च । रूपिणः पुद्गलाः।
-तत्त्व. अ५ । सू ३, ४ पुद्गल-नित्य तथा अवस्थित द्रव्य है। अस्तु स्कंध भी नित्य तथा अवस्थित द्रव्य है।
न जातुचिदनादिकालप्रसिद्धिवशोपनीता मर्यादामतिकांमति, स्वलक्षणव्यतिकरो हि निर्भेदताहेतुः पदार्थानाम्, अतः स्वगुणमपहाय नान्यदीयगुण सम्परिग्रहमेतान्याविष्टन्ते, तस्मादवस्थितानीति ।
-तत्त्व. अ५ । सू ३ भाष्य पर सिद्धसेनगणि टीका पुदगल नित्य तथा अवस्थित द्रव्य है। अतः यह कभी सर्वथा नष्ट नहीं होगा तथा कभी अन्य द्रव्य में परिणत नहीं होगा।
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