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पुद्गल-कोश
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_परमाणु पुद्गल सर्वांश रूप से ही कंपन करता है, देशतः (आंशिक भाव में एकांश में कंपन कंपन ) नहीं करता है अतः सर्वांश रूप से परमाणु की स्थिति जघन्य एक समय की और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्येय भाग तक की होती है ।
परमाणु पुद्गल (बहुवचन ) सदाकाल सर्वांश रूप से सकंप रहते हैं । .४७ परमाणु पुद्गल और विविध अपेक्षा से अंतरकाल
( मूल पाठ के लिए देखो क्रमांक २२ ) .१ परमाणुत्व की अपेक्षा
एक परमाणु अपना परमाणु रूप छोड़कर स्कंध का प्रदेश बनकर पुनः परमाणु रूप को प्राप्त हो, इसके मध्य का काल स्कंधसंबंधकाल कहलाता है वह जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्यातकाल का होता है अतः परमाणु का अंतरकाल जघन्य एक समय का, उत्कृष्ट असंख्यातकाल का होता है । •२ विवक्षित क्षेत्र की अपेक्षा
परमाणु जब किसी एक विवक्षित क्षेत्र से प्रच्यूत होकर पुनः उस क्षेत्र को प्राप्त करते हैं इनका अंतरकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट अनंतकाल का होता है। लवटीकाकार कहते हैं कि यह अंतरकाल तीर्थंकरों के द्वारा प्रतिपादित है। पुद्गल यावत् स्कंध-देश-प्रदेश-परमाणु किसी एक क्षेत्र से प्रच्यूत होकर पुनः उसी क्षेत्र को प्राप्त करते हैं तब इनका अंतरकाल कदाचित् एक समय आदि का, कदाचित् आवलिकादि संख्यातकाल का अथवा पल्योपम आदि ( असंख्यातकाल ) काल का पावत् अनन्तकाल का होता है । '३ सकंपत्व की अपेक्षा
सकंप परमाणु का स्वस्थान की अपेक्षा ( सकंपता) अंतरकाल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट असंख्यातकाल का होता है। यहाँ स्वस्थान से अभिप्राय है कि परमाणु परमाणुभाव में रहता हुआ सकंपता से निश्चल होकर पुनः सकंपता को प्राप्त करता है इसमें जो काल लगता है वह सकंप परमाणु का स्वस्थान अंतरकाल है ।
सकंप परमाणु का परस्थान की अपेक्षा ( सकंपता ) अंतर काल जघन्य एक समय का तथा उत्कृष्ट असंख्यात काल का होता है । यहाँ परस्थान से अभिप्राय है कि सकंप परमाणु द्विप्रदेशादि स्कंध में अंतभूत होकर निश्चलता को प्राप्त कर जब वह उस स्कंध से निकलकर पुनः परमाणुभाव को प्राप्त कर सकंपता को प्राप्त करता है इसमें जो काल लगता है वह सकंप परमाणु का परस्थान अंतरकाल है ।
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