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पुद्गल-कोश
३४७ (ख) जावदियं आयासं अविभागी पुग्गलाणुउदृद्ध। तं खु पदेसं जाणे सव्वाणुट्ठाणदाणरिह।
--बृद्रस० गा २७ टीका-"जावदियं आयासं अविभागी पुग्गलाणु उदृद्ध तं खु पदेसं जाणे।" यावत्प्रमाणमाकाशमविभागिपुद्गलपरमाणुणा विष्टब्धं व्याप्तं तदाकाशं खु स्फुटं प्रदेशं जानाहि । (ग) एकस्मिन्नाकाशप्रदेशे परमाणोरवगाहः ।
---सर्व० अ५ । सू १४ 1 पृ० ४७९ परमाणोरेकस्मिन्नेव प्रदेशे ( अवगाहः )।
-तत्त्व• अ५ । सू १४-भाष्य परमाणु पुदगल दो आदि प्रदेशों से रहित है अतः परमाणु पुद्गल को अप्रदेशी कहा गया है। वह अविभागी परमाणु पुद्गल जितने आकाश प्रदेश को अवगाहित करता है उसे आकाश प्रदेश कहते हैं ।
एक परमाणु आकाश के एक प्रदेश में ही अवगाह करता है । (घ) (परमाणुः ) क्षेत्र क्षेत्रतस्त्वेकप्रदेशावगाढ़ एव ।
-विशेभा० या १३९५ । टीका .२ परमाणु पुद्गल और क्षेत्र (ङ) अवष्टब्धो नभोदेशः प्रदेशः परमाणुना।
-योगसार अधि २ । श्लो ९ '३ परमाणु और क्षेत्र (च) पुद्गलाश्च परमाणु प्रभृतयः सर्वलोक इति ।
-प्रशम० श्लो २१३ । टीका परमाणु सर्वलोक में है। .४१ परमाणु का एकैक ( मान का एकैक )
कइविहे णं भंते ! परमाणू पन्नत्ते ? गोयमा ! चउविहे परमाणू पन्नत्ते, तंजहा-१ दव्वपरमाणू, २ खेत्तपरमाणू, ३ कालपरमाणू, ४ भाव
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