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पुद्गल-कोश
(२०) एकवचन चरम, एकवचन अचरम और बहुवचन अवक्तव्य । (२१) एकवचन चरम, बहुवचन अचरम और एकवचन अनक्तव्य । (२२) एकवचन चरम, बहुवचन अचरम और बहुवचन अवक्तव्य । (२३) बहुवचन चरम, एकवचन अचरम और एकवचन अवक्तव्य । (२४) बहुवचन चरम, एकवचन अचरम और बहुवचन अवक्तव्य । (२५) बहुवचन चरम, बहुवचन अचरम और एकवचन अवक्तव्य । (२६) बहुवचन चरम, बहुवचन अचरम और बहुवचन अवक्तव्य ।
परमाणु पुद्गल चरम भी नहीं है, अचरम भी नहीं है किन्तु नियम से अवक्तव्य है। अवशेष भंग परमाणु पुदगल में घटित नहीं होते हैं ।
परमाणु पुद्गल में केवल तीसरा भंग- अवक्तव्य भंग ही घटित होता है ।
परमाणु पुद्गल चरम नहीं होता है क्योंकि चरमत्व अन्य की अपेक्षा से होता है परन्तु परमाणु पुद्गल में अपेक्षा योग्य अन्य पदार्थ की विवक्षा नहीं है तथा परमाणु सांश-अवयव रहित है जिससे अवयव की अपेक्षा उसका चरमत्व प्रकल्पित हो सके। अतः परमाणु पुद्गल अवयव रहित होने से चरम नहीं है। अचरम भी नहीं है क्योंकि अवयव रहित होने से उसका मध्यत्व भी नहीं है परन्तु अवक्तव्य है । क्योंकि चरम अथवा अचरम व्यवहार का कारण होने से चरम शब्द से अथवा अचरम शब्द से उसका व्यवहार होना अशक्य है। जो शब्द के द्वारा कहा जा सकता है उसे वक्तव्य कहते हैं परन्तु जो चरम शब्द से अथवा अचरम शब्द से स्वस्व की प्रवृत्ति निमित्त रहित होने से कहा नहीं जा सकता है उसे अवक्तव्य कहा जाता है। शेष के भंगों का प्रतिषेद्य करना चाहिए क्योंकि परमाणु पुद्गल में उन भंगों का होना संभव नहीं है। कहा है ---"परमाणु में तीसरा भंग होता है अर्थात् परमाणु का विवेचन करने से तीसरा भंग ग्राह्य हैं शेष भंग अवयव रहित होने से प्रतिषेध योग्य है। •४० परमाणु पुद्गल और क्षेत्र १ परमाणु पुद्गल का आकाश प्रदेश अवगाहन (क) अपदेसो परमाणू तेण पदेसुब्भ वो भणिदो।
-प्रव० अ २ । गा ४५ जयसेन टीका-"अपदेसो परमाणु" अप्रदेशो द्वितीयादि प्रदेशाहितो योऽसौ पुद्गलपरमाणुः 'तेण पदेसुब्भवो भणिदो' तेन परमाणुना प्रदेशस्योद्भव उत्पत्तिर्भणिता। परमाणव्याप्तक्षेत्र प्रदेशो भवति ।
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