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पुद्गल-कोश
-०४-७६ पोग्गलाहारा ( पुद्गलाहारक )
— भग० श १४ । उ ६ । प्र० १ । पृ० ७०१
पुद्गलों का आहार करने वाला ।
यहाँ नारकी जीव का विवेचन किया गया है । नारकी जीव पुद्गलों का आहार करते हैं अतः वे पुद्गलाहारक कहे जाते हैं ।
• ०४.७७ पोग्गली ( पुद्गली )
- भग० श८ । उ १० । प्र०४५ | पृ० ५७४ 'पोग्गली' जिस जीव के श्रोत आदि इन्द्रियाँ हों वह जीव पुद्गली । जो पुद्गल सहित हो वह पुद्गली । यथा-दड सहित मनुष्य को दंडी कहा जाता है, छत्र सहित मनुष्य को छत्री कहा जाता है उसी प्रकार पुद्गल सहित जीव को पुद्गली कहा जाता है | अतः सिद्ध जीव पुद्गली नहीं होते हैं । संसारी जीव पुद्गली होते हैं । • ०४७८ पोग्गले ( पुद्गल )
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भग० श २० । उ २ । प्र ७ । पृ० ७९२
जीव के अभिवचनों में पुद्गल शब्द भी आया है ।
मूल - जीवत्थिकायस्स णं भंते! केवतिया अभिवयणा पन्नत्ता ? गोमा ! अणेगा अभिवयणा पन्नत्ता x x x पोग्गले ति वा x x x |
टीका- 'पोग्गले' त्ति पूरणाद् गलनाच्च शरीरादीनां पुद्गलः ।
जीव पुद्गलों को शरीर आदि के रूप में ग्रहण भी करता है और उत्सर्ग भी करता है अतः जीव का एक अभिवचन पुद्गल भी कहा गया है ।
• ०४७९ पोग्गलोवचए (पुद्गलोपचय )
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पुद्गलोपचय - पुद्गलों का उपचय - संग्रह | पुद्गलों का उपचय प्रयोग से भी होता है और स्वाभाविक रूप से भी । वत्थस्स णं भंते ! पोग्गलोवचए कि पओगसा, वीससा ? पओगसा वि, वीससा वि ।
- भग० श ६ । उ ३ । प्र५ । पृ० ४९३
वस्त्र में पुद्गल का उपचय प्रयोग से भी होता है और स्वाभाविक रूप से भी
होता है ।
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गोयमा !
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