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पुद्गल-कोश
एक प्रदेशी परमाणु में उस एक प्रदेश को छोड़कर अन्त इस संज्ञा को प्राप्त होने वाला दूसरा प्रदेश नहीं पाया जाता है, इसलिये परमाणु अप्रदेशानन्त है । ऐसी स्थिति में द्रव्यगत अनंत संख्या की अपेक्षा अनंत संज्ञा को प्राप्त होनेवाले नो कर्म द्रव्यानन्त में वह अप्रदेशानन्त कैसे अन्तर्मूत हो सकता है अर्थात् नहीं हो सकता, इसलिए अप्रदेशानन्त भी स्वतन्त्र है ।
३१-१६ परमाणुओं में स्पर्श गुण की सिद्धि
xxx सूक्ष्मेषु परमाण्वादिषु स्पर्शव्यवहारो न प्राप्नोति तत्र तद्भावात् ? नैष दोषः, सूक्ष्मेष्वपि परमाण्वादिष्वस्ति स्पर्शः स्थूलेषु तत्कायषुतद्दर्शनान्यथानुपपत्तेः नह्यत्यन्तासतां प्रादुर्भावोऽस्त्यतिप्रसङ्गात् । किंतु इन्द्रियग्रहणयोग्या न भवन्ति । ग्रहणायोग्यानां कथं स व्यपदेश इति चेन्न, तस्य सर्वदा योग्यत्वाभावात् । परमाणुगतः सर्वदा न ग्रहणयोग्यश्चेन्न, तस्यव स्थूल कार्याकारेण परिणतौ योग्यत्वोपलम्भात् × × ×
- षट्० खण्ड ० १ । भ १ । सू ३३ । टीका । पु १ । पृ० २३८-३९ सूक्ष्म परमाणु में भी स्पर्श गुण है, अन्यथा परमाणुओं के कार्यरूप स्थूल पदार्थों में स्पर्श की उपलब्धि नहीं हो सकती । किन्तु स्थूल पदार्थों में स्पर्श पाया जाता है इसलिये सूक्ष्म परमाणुओं में भी स्पर्श की सिद्धि हो जाती है क्योंकि, न्याय का यह सिद्धान्त है कि जो अत्यन्त ( सर्वथा ) असत् होते हैं उनकी उत्पत्ति नहीं होती है । यदि सर्वथा असत् की उत्पत्ति मानी जाये तो अतिप्रसंग हो जायगा । अर्थात् बांझ के पुत्र, आकाश के फूल आदि अविद्यमान बातों का भी प्रादुर्भाव मानना पड़ेगा । अतः परमाणुओं में स्पर्शादि गुण पाये जाते हैं किन्तु वे इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं होते हैं । परमाणुगत स्पर्श के इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करने की योग्यता का सदैव अभाव नहीं है । क्योंकि जब परमाणु स्कंध रूप में स्थूलत्व को प्राप्त होते हैं, तब तद्गत धर्मों की इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करने योग्यता पाई जाती है । ३११७ अविभागप्रतिच्छेद
(क) तत्थ एक्कम्हि परमाणुम्हि जो जहण्णणं घट्टिदो अणुभागो तस्स अविभागपडिच्छेदो त्ति सण्णा ।
- षट्० खण्ड ०४, २, ७ । सू १९९ । टीका | पु १२ | पृ० ९२ एक परमाणु में जो जघन्य रूप से अवस्थित अनुभाग ( गुण-शक्ति ) है वह उसकी अविभाग प्रतिच्छेद संज्ञा है ।
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