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पुद्गल-कोश गुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा ; कालवण्णपज्जवेहि सिय होणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिए जइ होणे अणंतभागहीण वा असंखेज्जइभागहोणे वा संखेज्जनभागहीणे वा संखेज्जगुणहोणे वा असंखेज्जगुणहीण वा, अणंतगुणहीण वा, अह अब्भहिए अणंतभागमभहिए वा असंखेज्जइभागमभहिए वा संखेज्जइभागमब्भहिए वा संखेज्जगुणमब्भहिए वा असंखेज्जगुणमब्भहिए वा अणंतगुणमन्भहिए वा ; एवं अवसेसवण्ण-गंधरस-फासपज्जवेहि छट्ठाणवडिए। फासा णं सीय-उसिण-निद्धलुक्खेहि छट्ठाणवडिए, से तेण?णं गोयमा! एवं वुच्चइ परमाणुपोग्गलाणं अणता पज्जवा पन्नत्ता।
-पण्ण ० प ५ । सू ७४ । पृ० ३६२-३ टीका - 'परमाणुपोग्गलाणं भंते' इत्यादि स्थित्या चतुःस्थानपतितत्वं, परमाणोः समयादारभ्योत्कर्षतोऽसख्येयकालमवस्थानभावात्। कालाऽऽदिवणपर्यायः षट्स्थानपतिततः एकस्यापि परमाणोः पर्यायाऽऽनन्त्याविरोधात्। ननु परमाणुरप्रदेशो गीयते। ततः कथं पर्यायाऽऽनन्त्याविरोध, पर्यायाऽऽनन्त्य नियमतः सप्रदेशत्वप्रसक्तः ? तदयुक्तम्-वस्तुतत्त्वापरिज्ञानात् । परमाणुहि अप्रदेशो गीयते-द्रव्यरूपतया सांऽशो न भवतीति, न तु कालभावाभ्यामिति। "अपएसो दव्वट्ठयाए उ" इति वचनात् । ततः कालभावाभ्यां सप्रदेशत्वेऽपि न कश्चिद्दोषः तथा परमाणवादीनामसंख्यातप्रदेशकस्कंधपयन्तानां केषाञ्चिदनन्तप्रदेशकानामपिस्कंधानां तथा एकप्रदेशावगाढानां यावत्संख्यातप्रदेशावगाढानां शीतोष्णस्निग्धरूक्षरूपाश्चत्वार एव स्पर्शाइति तैरेव परमावादीनां षट्स्थानपतितता वक्तव्या, न शेषः।
परमाणुपुद्गलों में अनंतपर्याय होते हैं । परमाणुपुद्गल परमाणुपुद्गल द्रव्य रूप से तुल्य है, प्रदेशरूप से भी तुल्य है तथा अवगाहन रूप से भी तुल्य है।
परमाणुपुद्गल परमाणुपुद्गल से स्थितिरूप से कदाचित् न्यून है, कदाचित् तुल्य है, कदाचित् अधिक है। यदि न्यून है तो असंख्यात भाग न्यून है अथवा संख्यात भाग न्यून है अथवा संख्यातगुण न्यून है अथवा असंख्यातगुण न्यून है (चतु:स्थान न्यून )। यदि अधिक है तो असंख्यात भाग अधिक है अथवा संख्यात भाग अधिक है अथवा संख्यात गुण अधिक है अथवा असंख्यातगुण अधिक है (चतु:स्थान अधिक)।
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