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पुद्गल - कोश
वयवा णं चेव होदि, ण परमाणुपोग्गलाणं, निरवयवत्तादो ति ण पच्चवट्ठेयं ।
परमाणूणं णिरवयवत्तासिद्धीदो । 'अपदेसं णेव इ दिए गेज्भं' इदि परमाणूणं णिरवयवत्तं परियम्मे वृत्तमिदि णासंकणिज्जं पदेसो नाम परमाणू, सोजम्हि परमाणुम्हि समवेदभावेण णत्थि सो परमाणू अपदेसओ त्ति परियमे वृत्तो | तेण ण णिरवयवत्तं तत्तो गम्मदे । परमाणू सावयवो त्ति कत्तो णव्वदे ? बंधभावण्णहाणुववत्तदो । जदि परमाणू णिरवयवो होज्ज तो क्बंधाणमणुप्पत्ती जायदे | अवयवाभावेण देसफासेण विणा सव्वास मुवगर्हितो बंधुप्पत्तिविरोहादो। ण च एवं उप्पण्णखं धुबलंभादो । तम्हा सावयवो परमाणू त्ति घेत्तव्वो ।
---षट्० खण्ड० ५ । भा १ । सू १८ । टीका । पु १३ । पृ १८ । १९
एक द्रव्य का देश अर्थात् अवयव यदि अन्य द्रव्य के देश अर्थात् उसके अवयव के साथ स्पर्श करता है उसे देशस्पर्श कहते हैं । यह देश स्पर्श स्कंधों के अवयवों का ही होता है, परमाणु रूप पुद्गलों का नहीं, क्योंकि ने निरवयव होते हैं । यदि कोई ऐसा निश्चय करे तो यह ठीक नहीं है । क्योंकि परमाणु निरवयव होते हैं, यह बात असिद्ध है । परमाणु अप्रदेशी होता है और उसका इन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं होता । इस प्रकार परमाणुओं का निरवयवपन परिकर्म में कहा है । यह आशंका नहीं करनी चाहिए । क्योंकि प्रदेश का अर्थ परमाणु है । वह जिस परमाणु में समवेतभाव से नहीं है वह परमाणु अप्रदेशी है, इस प्रकार परिकर्म में कहा है । इसलिये परमाणु निरवयव होता है यह बात परिकर्म से नहीं जानी
जाती ।
स्कंधाभाव को अन्यथा वह प्राप्त नहीं हो सकता, इसी से जाना जाता है कि परमाणु सावयव होता है ।
यदि परमाणु निरवयव होवे तो स्कंधों की उत्पत्ति नहीं हो सकती है क्योंकि जब परमाणुओं के अवयव नहीं होंगे तो उनका एक देश स्पर्श नहीं बनेगा और एक देश स्पर्श के बिना सर्व स्पर्श मानना पड़ेगा जिससे स्कंधों की उत्पत्ति मानने में विरोध आता है । परन्तु ऐसा नहीं है, क्योंकि उत्पन्न हुए स्कंधों की उवलब्धि होती है । इसलिए परमाणु सावयव होता है - ऐसा यहाँ ग्रहण करना चाहिए ।
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