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पुद्गल-कोश
कथंचिच्चरमः, कथंः, यत्र काले पूर्वाह्ना दो केवलिना समुद्घातः कृतस्तत्रैव यः परमाणुः परमाणुतया संवृत्तः स तं कालविशेषं केवलिसमुद्घातविशेषितं न कदाचनापि प्राप्स्यति, तस्य केवलिनः सिद्धिगमनेन पुनः समुद्घाताभावादिति तदपेक्षया कालतश्चरमोयाविति, निर्विशेषणकालापेक्षयात्वचरमइति । 'भावाएसेणंति' भावो वर्णादिविशेषः तद्विशेषणलक्षणप्रकारेण स्याच्चरमः' कथं ? विवक्षित केवलिसमुद्घातावसरे यः पुद्गलो वर्णादिभावविशेषं परिणतः स विवक्षित केवलिसमुद्घातविशेषितवर्णपरिणामापेक्षया चरमो यस्मात्तत्के व लिनिर्वाण पुनस्तं परिणामसौ न प्राप्स्यतीति इदं च व्याख्यानं चूर्णिकारमतमुपजीव्य कृतमिति, अनन्तरं परमाणोश्चरमत्वाच रमत्वलक्षणः परिणामः ।
परमाणु पुद्गल — द्रव्य आदेश से चरम नहीं है, अचरम है ; क्षेत्रादेश से कदाचित् चरम है, कदाचित् अचरम है ; कालादेश से कदाचित् चरम है कदाचित् अचरम है और भावादेश से कदाचित् चरम है, कदाचित् अचरम है ।
जो परमाणु विवक्षित भाव से रहित होकर पुनः उस भाव को कभी भी प्राप्त नहीं होता है, वह परमाणु उस भाव की अपेक्षा 'चरम कहलाता है और जो परमाणु उस भाव को पुनः प्राप्त होता है वह उस अपेक्षा 'अचरम' कहलाता है ।
(१) द्रव्य की अपेक्षा परमाणु चरम नहीं है, अचरम है, क्योंकि परमाणु अन्य परमाणु या परमाणुओं से संघात को प्राप्त होकर स्कंध का प्रदेश बन जाता है लेकिन कालान्तर में वही परमाणु भेद को प्राप्त होकर पुन: परमाणु रूप को प्राप्त हो जाता है । अतः यह कहा जाता है मिल जाने से चरम नहीं होता है बल्कि पुनः परमाणुत्व को अपेक्षा अचरम कहलाता है । यह टीकाकार का उद्धरण है ।
कि परमाणु स्कंध में प्राप्त होकर द्रव्य की
(२) क्षेत्रादेश से ( क्षेत्र की अपेक्षा ) परमाणु पुद्गल कदाचित् चरम है, कदाचित् अचरम है । जिस क्षेत्र में कोई एक केवलज्ञानी समुद्घात को प्राप्त हुए थे, उस समय उस क्षेत्र में जो परमाणु वहाँ स्थित था, वह परमाणु वैसे समुद्घातित क्षेत्र को प्राप्त नहीं कर सकता है अतः वैसे समुद्घातित क्षेत्र की अपेक्षा वह परमाणु चरम है, ऐसा टीकाकार का कथन है ।
विशेषण रहित क्षेत्र की अपेक्षा पपमाणु पुद्गल फिर उस क्षेत्र में अवगाढ हो सकता है अतः निर्विशेषण क्षेत्र की अपेक्षा परमाणु पुद्गल अचरम कहलाता है ।
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