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पुद्गल - कोश
(ग) भेदादणुरिति प्रोक्तं नियमस्योपपत्तये ।
(घ) सव्र्व्वेस खंधाणं जो अंतो तं वियाण परमाणू ।
- तत्त्वश्लो० अ ५ । सू २७ । पृ० ४३१
टीका - उक्तानां स्कंधपर्य्यायाणं योऽन्त्यो भेदः स परमाणुः । (च) परमाणोस्तु स्कंधाद् भेदकृतमेव करणम् ।
परमाणु की उत्पत्ति भेद से ही होती है, है । समस्त स्कंधों का जो अंत का भेद है उसे
* ३७ परमाणु पुद्गल की स्पर्शना
( मूल पाठ के लिए देखो क्रमांक २० )
(१) एक देश से एक देश का स्पर्श । बहुत देशों का स्पर्श । सर्व का स्पर्श । एक देश का स्पर्श । (५) बहुत देशों से बहुत देशों का स्पर्श । (६) बहुत देशों से सर्व का स्पर्श ।
(२) एक देश से (३) एक देश से (४) बहुत देशों से
(७) सर्व से एक देश का स्पर्श ।
(८) सर्व से बहुत देशों का स्पर्श । (९) सर्व से सर्व का स्पर्श ।
- पंच० श्लो ७७ । पूर्वार्ध
संघात से, भेद संघात से नहीं होती परमाणु कहते हैं ।
- विशेभा० गा ३३११ । टीका
परमाणु - स्कंधादि की पारस्परिक की स्पर्शना की अपेक्षा नव विकल्प ( भंग ) बनते हैं—
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• १ परमाणु पुद्गल की अन्य परमाणु पुद्गल से अथवा विविध
प्रदेशी स्कंधों से स्पर्शना
परमाणु पुद्गल परमाणु पुद्गल को केवल नौवें भंग से स्पर्श करता है अर्थात् परमाणु पुद्गल जब अन्य परमाणु पुद्गल को स्पर्श है तो सर्व से सर्व को स्पर्श करता है । दूसरे विकल्प इसमें घटित नहीं होते, क्योंकि परमाणु निरंश होता है ।
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