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पुद्गल-कोश •४ प्रतिघात ( गति का प्रतिहनन )
(१) तिविहे पोग्गलपडिघाए पन्नते, तंजहा-परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलं पप्प पडिहन्निज्जा, लुक्खत्ताते वा पडिहणिज्जा, लोगते वा पडिहनिज्जा।
- ठाण० स्था ३ । उ ४ । सू २११ । पृ० २१९ टीका-'तिविहे' इत्यादि, पुद्गलानाम् -- अण्वादीनां प्रतिघातो-गतिस्खलनं पुद्गलप्रतिघातः, परमाणुश्चासौ पुद्गलश्च परमाणुपुद्गलः स तदन्तर प्राप्य प्रतिहन्येत - गतेः प्रतिघातमापद्यत, रूक्षतया वा तथाविधपरिणामान्तरात् गतितः प्रतिहन्येत, लोकान्ते वा, परतो धर्मास्तिकायाभावादिति।
(२) यतस्त्रिविधं प्रतिघातमामनन्ति भगवंतः परमाणूनां-बंधनपरिणामोपकाराभाववेगाख्यम् ।
—सिद्ध ० अ ५। सू २६ । पृ० ३६८ परमाणु पुद्गल की गति-तीन स्थिति अवस्था में प्रतिहत होती है-(१) गतिमान् परमाणु पुद्गल अन्य परमाणु पुद्गल से प्रतिघात पाकर गति से स्खलित होता है ; (२) गतिमान् परमाणु पुद्गल अन्य पुद्गल-स्कंध पुद्गल तथा अन्य परमाणु पुद्गल का संयोग प्राप्त करके रूक्ष या स्निग्ध गुणों के नियमों के अनुसार बंधन को प्राप्त होकर गति में स्खलित होता है, (३) गतिमान् परमाणु पुद्गल लोकांत में जाकर, तत्पश्चात् धर्मास्तिकाय के अभाव के कारण गति में स्खलित होता है।
तत्त्वार्थ सूत्र के टीकाकार ने परमाणु पुद्गल का प्रतिघात (गति-स्खलन) उपयुक्त तीन प्रकार से ही माना है परन्तु क्रम इस प्रकार रखा है--(१) उपकारा भाव प्रतिघात, (२) बंधन परिणाम-प्रतिघात तथा (३) गतिवेग प्रतिघात । •३२ ७ काल की संख्या का प्रविभक्त है xxx पविहत्ता कालसंखाणं ।
--पंच गा ८० अमृत टीका-एकेन प्रदेशेनै काकाशप्रदेशातिवतिततद्गतिपरिणामापन्नेन समयलक्षणकाल विभागकरणात् कालस्य प्रविभक्ता।
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