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पुद्गल-कोश
३१३ परमाणु पुद्गलों ( बहुवचन ) में भी किसी एक का भी देश रूप से कंपन नहीं होता। याद कंपन होता है तो सर्वांश रूप से कंपन होता है। परमाणु पुद्गलों में कंपन और निष्कंप की भजना है-कोई कंपन करता है, कोई निष्कंप रहता है।
.३ एजनादि क्रिया
परमाशु पुदगल-कदाचित् (१) कंपन करता है, (२) विविध भाव से कंपन करता है, (३) देशांतर गति करता है, (४) स्पंदन-परिस्पंदन करता है, (५) सभी दिशाओं में गति करता है, (६) क्षुब्ध होता में अर्थात् समस्त रूप से हलचल करता है तथा (७) उदीरण करता है तथा परमाणु पुद्गल उन-उन भावों में परिण मन करता है ; कदाचित् कंपन नहीं करता है यावत् उदौरण नहीं करता है तथा उनउन भावों में परिणमन नहीं करता है । '३२.६ गति
.१ अनुश्रेणिगति २ नोभवोपपातगति '३ स्पृशद्गति-अस्पृशद्गति [पाठ के लिए देखो-क्रमांक १२.०७.०२ ] परमाणु पुद्गल की गति अनूश्रेणी होती है परन्तु विश्रेणी नहीं होती है ।
परमाणु पुद्गल एक समय में लोक के पूर्व चरमांत से पश्चिम चरमांत तक, पश्चिम चरमांत से पूर्व चरमांत तक, दक्षिण चरमांत से उत्तर चरमांत तक, उत्तर चरमांत से दक्षिण चरमांत तक, ऊपर के चरमांत से नीचे के चरमांत तक व नीचे के चरमांत से ऊपर के चरमांत तक गमन कर सकता है। यह गति भी अमुश्रेणी होती है।
परमाणु पुद्गल की इस गति को पुद्गल नोभवोपपात गति कहते हैं ।
परमाणु पुद्गल का परस्पर स्पर्श करते हुए जो गति होती है उसे स्पृशद गति कहते हैं। इसके विपरीत परस्पर स्पर्श किये बिना परमाणु पुद्गल की जो गति होती है उसे अस्पृशद् गति कहते हैं । -यथा परस्पर स्पर्श किये बिना परमाणु पुद्गल एक समय में एक लोकांत से दूसरे लोकांत तक जाता है ।
परमाणु पुद्गल की गति को पुदगल गति से भी सम्बोधित किया गया है ।
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