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पुद्गल - कोश
चार स्पर्श ( शीत-उष्ण-स्निग्ध- रूक्ष ) वाले जो सूक्ष्म पुद्गल है वे अगुरुलघु हैं । परमाणुपुद्गल में चार स्पर्शो में से कोई दो अविरोधी स्पर्श होते हैं अतः परमाणु पुद्गल अगुरुलघु है ।
- ३१.१२ परिणमन
(क) रूपरसगंधस्पर्शयुक्ता हि परमाणवः एकगुणरूपादिपरिणताः संख्येयाऽसंख्येयाऽनंतगुणत्वेन
द्वित्रिचतुः उपचान्तीति x x x
वर्धन्ते तथैव
हानिमपि
(ख) अण्णणिरावेक्खो जो, परिणामो सो सहावपज्जावो ॥
— राज० अ ५ । सू १ । पृ० ४३४
रूप-रस-गंध-स्पर्शं युक्त परमाणु पुद्गल में एक गुण, दो गुण, तीन गुण, चार गुण, (पाँच गुण, छह गुण, सात गुण, आठ गुण, नौ गुण, दस गुण ) संख्यात गुण, असंख्यात गुण और अनंत गुण रूप-रस-गंध-स्पर्श गुणों की हानि - वृद्धि होती रहती हैं अत: परमाणु पुद्गल परिणामी है ।
( ग )
- नियम ० अधि २ । गा २८ । पूर्वार्ध
परमाणु पुद्गल में स्वभाव पर्याय होती है । जो परिणमन अन्य को अपेक्षा से नहीं होता है उसे स्वभाब पर्याय कहते हैं । परमाणु पुद्गल का परिणमन पर की अपेक्षा रहित होता है ।
x x x परिणाम गुणो Xxx।
- पंच० गा० ७८
अमृत टीका - परिणामवशात् विचित्रो हि परमाणो परिणामगुणः क्वचित्कस्यचिद्र पस्य व्यक्ताव्यक्तत्वेन विचित्रां परिणतिमादधाति ।
पर्यायों के कारण परमाणु पुद्गल में नाना प्रकार के परिणाम गुण होते हैं । कहीं पर किसी एक गुण की प्रगटता अप्रगटता के कारण नाना प्रकार की परिणति को धारण करते हैं ।
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*३१·१३ परमाणुपुद्गल जीव के परिभोग में नहीं आता
धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए, आगासत्थिकाए, जीवे असरीरपडिबद्ध े, परमाणुपोग्गले, सेलेसि पडिवन्नए अणगारे xxx एए णं दुविहा जीवादव्वा य अजीवदव्वा य जीवाणं परिभोगत्ताए नो हव्वमागच्छति ।
- भग० श० १८ । उ ४ । सू १ । पृ० ७६९
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