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पुद्गल - कोश
२८३
(छ) ( परमाणुः ) पंचानां रसानां द्वयोगं धयोः पंचविधस्य वर्णस्यान्यतमेनकेन रसादिना युक्तः चतुर्णां स्पर्शानां मध्ये स्पर्शद्वयेनाविरुद्ध ेन
युक्तः ।
- तत्त्वसिद्ध ० अ ५ । सू २४ । पृ० ३६६
(ज) एयरसरूवगंधं दो फास तं हवे सहावगुणं । विहावगुणमिदि भणिदं, जिणसमये सव्वपयडत्तं ॥
परमाणुपुद्गल स्वभाव पुद्गल है और उसमें एक रस, एक वर्ण, एक गंध और दो अविरोधी स्पर्श होते हैं लेकिन विभाव गुण रूप विभाव पुद्गल भी होते हैं वे दो अणु आदि से लेकर संख्यात, असंख्यात और अनंत अणुओं के स्कंध रूप होते हैं- वे विभाव गुणधारी है ।
·३१-११ अगुरुलघु
(क) सुहुमाणंतपवेसा, अगुरुलहू जाव परमाणू ॥
उपरोक्त स्वभाव और विभाव पुद्गलों का वर्णन जैन आगमो में स्पष्ट रूप से कथन किया गया है ।
- नियम ०
टीका- यानि च परमाणुपुद्गलं यावद् द्रव्याणि तानि सर्वाणप्य गुरुल घूनि ।
० गा २७
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- बिह० उ १ । सू ३४ । भाष्य मा २६८७
सूक्ष्मपरिणामपरिणतानि अनंतप्रादेशिकादीनि
( ख ) x x x 1 अगुरुलहूचउफासा अरूविदव्वा य होंति नायव्वा, सेसाओ अटुकासा अगुरूलहुया निच्छणयस्स चउफासा त्ति सूक्ष्मपरिणमानि, 'अट्ठफास' त्ति वादराणि ।
- भग० श १ 1 उ ९ । सू २८७ । टीका
(ग) अगुरुलहुपरिणामो परमाणूओ आरम्भ जाव असंखेज्जपदेसिया खंधा सुहुमपरिणयावि खंधा अगुरुलहुगा चेव ।
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- सूय ० अ १ चू० गा २५
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