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पुद्गल-कोश
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लोहदंडादि रूप गुरु और अर्कतुल ( आक के पेड़ का रूंआ ) आदि रूप लघु पदार्थों का ग्रहण किया जाता है ।
'अगुरुलघु' विशेषण नहीं किया जाता है | क्योंकि परमाणु आदि चक्षुरिन्द्रिय के विषय नहीं होते हैं ।
• २ कर्मपुद्गलों को इन्द्रिय ज्ञान से नहीं जाना जाता है । कर्मपुद्गलानातिसूक्ष् तया चक्षुरादीन्द्रियागोचरत्वात् ।
- कर्मग्र ० ० भा ६ । गा५ । टीका । पृ० १५० - कर्मग्र० भा १ । गा ३२ । टीका । पृ० ४६
कर्म पुद्गल अति सूक्ष्म होने के कारण चक्षु आदि इन्द्रियों के अगोचर है ।
•३ पुद्गल और अवधि ज्ञान
(क) ओहिणाणं णाम दव्व क्खेत्त-काल-भाव- वियप्पियं पोग्गल - दव्वं पच्चक्खं जाणदि ।
- षट्० खण्ड १, १ सू २ । टीका । पु १३ । पृ० ९३ (ख) तजस भाषा - द्रव्यापान्तरालवर्त्यनन्त- प्रदेशिकाद् द्रव्यादारभ्य विचित्रवृद्धया सर्व मूर्त द्रव्याण्युत्कृष्ट विषयपरिमाणमवधेर्वक्ष्यते । प्रतियस्तु गताऽसंख्येयपर्यायरूपं च भावतो विषयमानमभिधास्यते । अतः सर्वमपि पुद्गलास्तिकायं, अवधिग्राहयांश्च तत्पर्यायानाश्रित्यानन्तोऽवधिविषयः सिद्धो भवति । ज्ञ ेयभेदाच्च ज्ञानभेदः ।
- विशेभा० गा ५६९ । टीका । पृ० २५९-६०
(ग) परमाणुपज्जंता से सपोग्गल - दव्वाणमसंखेज्जलोग मेत्त- खेत्तकाल - भावाणं कम्मसंबंधवसेण पोग्गलभावमुवगयजीव [ जीवदव्वा ] णं च पच्चक्खेण × × ×
— विशेभा० गा ५६९ । टीका पृ० २६०
तेजस और भाषा द्रव्य के अन्तरालवर्ती अनन्त प्रदेशी द्रव्य से सर्वमूर्त द्रव्य को अवधि ज्ञान जानता है । भाव की अपेक्षा प्रत्येक वस्तु की असंख्यात पर्याय को जानता है अतः अवधिज्ञान सर्व पुद्गल द्रव्य को जानता है ।
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